कविता - पेड़-लताओं के हुल - चंद्र मोहन किस्कु

अब जंगल-पर्वतों में


पलाश फूल खिला है।


लाल अति सुन्दर


जैसे कोई


हुल की आग


जलाई है। देश के हर कोने


में जंगलों-पर्वतों के


पेड़-लताएं।


अब खड़े हुए है।


सर ऊँचा कर


बंद मुट्ठी को


आसमान की ओर


दिखाकर मनुष्यों को होशियार कर रहे है।


जो षड्यंत्र चल रहा है।


उन्हें उजाड़ने की


मनुष्यों के मन में


श्रेष्ठ होने की जो चाहत


फल-फूल रहा है।


उसके खिलाफ ही


पेड़-लताएं


हुल का आरम्भ किया है।


सिदो -कान्हू


के जैसा हुल


इसलिए तो


अब------


पहाड़-पर्वतों के


पेड़-लताओं में


हुल के रंग


लाल लगा हुआ हैं।


 उजाड़ने उजाड़ने