कविता - पिता के पास लोरियां नहीं होती - डॉ. भगवान स्वरूप कटियार

जाने-माने कवि और चिंतक हैं। उनके पाँच कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। अपनेअपने उपनवेश नाम से उनका ताजा कविता संग्रह बोधि प्रकाशन से आया है। विचारपरक रचनात्मक काम भी उन्होंने किया है। गद्य की भी कई महत्वपूर्ण किताबें उनके नाम हैं। सम्पर्क : ९४१५५६८८३६


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पिता, मोटे तने


और गहरी जड़ों वाला


एक वृक्ष होता


एक विशाल वृक्ष


और माँ होती है


उस वृक्ष की छाया


जिसके नीचे बच्चे


बनाते-बिगाड़ते हैं


अपने घरौंदे


पिता के पास


दो ऊंचे और मजबूत


कंधे भी होते हैं


जिन पर चढ़ कर


बच्चे देखते हैं


असमान छूने के सपने


पिता के पास


एक गहरा और चौड़ा


सीना भी होता है


जिसमें जज्व रखता है


वह अपने सारे दुःख


चेहरे पर फैली जाड़े की धूप की तरह


चिर मुस्कान के साथ


पिता के दो मजबूत हाथ


छेनी और हथौड़ी की तरह


दिन-रात तराशते रहते हैं


सपने ,सिर्फ और सिर्फ


बच्चों के लिए


इसके लिए वह अक्सर


अपनी जरूरतें


और यहाँ तक कि


अपने सपने भी


कर देता है मुल्तवी


और कई बार तो कर देता है


उन्हें स्थगति भी


पिता, भूत-वर्तमान और भविष्य


तीनों को एक साथ जीता है


भूत की स्मृतियाँ


वर्तमान का संघर्ष


और बच्चों में भविष्य


पिता की ऊँगली पकड़ कर


चलना सीखते बच्चे


एक दिन, इतने बड़े हो जाते हैं


कि कि भूल जाते रिश्तों की सम्वेदना


कभी पार किया सडक, पुल


और बीहड़ रास्तों में


ऊँगली पकड़ कर


तय किया कठिन सफर


गले में बाहें डाल कर


बच्चे जब झूलते हैं


और भरते हैं किलकारियाँ


तब पूरी कायनात


सिमट आती है


उसकी बाँहों में


इसी सुख पर


पिता कुर्बान करता है


अपनी पूरी ज़िन्दगी


और इसी के लिए पिता


बहाता है पसीना ताजिंदगी


ढोता है बोझा, खटता है फैक्ट्री में


पिसता है दफ्तर में


बनता है बुनियाद का पत्थर


जिस पर तामीर होते हैं


बच्चों के सपने


फिर भी पिता के पास


बच्चों को बहलाने


और सुलाने के लिए लोरियाँ नहीं होती