कला-विमर्स - जीवन में स्पेस, कला में स्पेस

एम.ए. (चित्रकला), डी.फिल. जन्म सिद्धार्थ नगर, उत्तर प्रदेश कविता संग्रह : ‘जिस तरह घुलती है काया', 'समय के चेहरे पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं और रेखांकन प्रकाशित। कुछ कविताओं का अंग्रेजी और कन्नड़ में अनुवाद। कई पुस्तकों के कवर डिजाइन। कई एकल एवं समूह कला प्रदर्शनियां। चर्चित चित्रकार एवं कवि।


यू तो स्पेस हर किसी की जिन्दगी में बहुत मायने रखता है, लेकिन हम इसे कितना जान, समझ और महसूस कर पाते हैं और कितना अपने को लाभान्वित कर पाते हैं, यह हम पर निर्भर करता है।


मैं स्पेस को कितना महसूस कर पाई हूँ और अभी तक इसके महत्त्व को कितना समझ पाई हूँ, जान पाई हूँ। उसे टूटे-फूटे शब्दों में बाँधने का प्रयास किया है।


इसे मैंने कुछ पंक्तियों में लिखा है। हो सकता है सम्पूर्ण सार में आप लोगों को तारतम्यता न लगे।


फिर भी ‘जीवन में स्पेस, कला में स्पेस' को जानने समझने की मेरी तुच्छ सी कोशिश है।


 


जीवन में स्पेस, कलाओं में स्पेस


यूं तो दुनिया भी एक स्पेस की तरह लगती है जिसमें ईश्वर ने (जो सबसे बड़ा रचयिता है) अपने मनचाहे आकार और रंग बनाए (गढ़)। यह बिल्कुल जरूरी नहीं है कि हम यह मानें कि वह पूर्णतया सुघड़ कलाकार है। उसकी कृतियों में कहीं सौन्दर्य, कहीं सन्तुलन दिखता है तो कहीं बिल्कुल नहीं।


यह कायनात जिसे ईश्वर ने हम इन्सानों के साथ हम इन्सानों के लिए रचा। हर इन्सान अपने एक निश्चित स्पेस के साथ जन्म लेता है, तभी न उसके लिए पांव रखने की जगह है।


और फिर जीवन के अलग-अलग मायनों में हमें स्पेस बनाना पड़ता है। एक स्पेस या विस्तार वह जो हमें दिखाई नहीं देता यानी अमूर्त है। जो हमारे भीतर हमारे विचारों, हमारी कार्यशैली, हमारे व्यवहार में होता है। एक स्पेस वह जो हमें दिखाई देता है, माने विजवल जैसे कोई खाली जगह।



स्पेस क्या है- अन्तराल, विस्तार, दिक्, शून्य, फलक, रिक्त स्थान?


जहाँ हम अपने ढंग से कुछ भी कहने या व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र होते हैं।


स्पेस का मेरे लिए मायने है- स्वतंत्रता, सौन्दर्य, खामोशी, सृजन और लचीलापन।


कोरा कैनवस या विस्तार जहाँ कलाकार अपने भीतर की पूरी कायनात को रचने के लिए स्वतंत्र है। कलाकार कुछ भी रच सकता है, मिटा सकता है और फिर नया रच सकता है।


मगर जीवन में ईश्वर प्रदत्त स्पेस में कई बार ऐसा नहीं हो पाता। जीवन में मिले अन्तरालों या कोरे स्थानों में जो एक बार अंकित हो गया तो मुश्किल से मिट पाता है। जीवन में मिले स्पेस में कुछ सार्थक अंकित हो यह इस पर निर्भर करता है। कि हम स्पेस या स्वतंत्रता का उपयोग कितने पोजेटिव ढंग से कर पाते हैं।


इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि प्राणी (हम) पहले मनुष्य जीवन है। जहाँ कई बार अन्तरालों में अनचाहा अंकित हो जाने पर मिटाना मुश्किल होता है। यानी बहुत सारा जीवन हमारे अधीन नहीं है। कला जीवन के बाद आती है, जहाँ बहुत सारी सम्भावनाएं यूँ ही उपजती हैं।


कुछ सार्थक करना, नया कर सकना स्पेस को डिफाइन करता है।


यदि हम अपने जीवन में अपने जेहन में थोड़ा स्पेस नहीं रखेंगे, तमाम विचारों से हम हर वक्त भरे रहेंगे तो कुछ नया क्रिएट करने की गुंजाइश कम ही होगी। फिर जीवन में तमाम चीजें या बातें, चाहते हुए भी हमारे अनुसार नहीं हो पाएंगी।


स्पेस एक स्थान है, जगह है चाहे विजबल हो चाहे इनविजबल स्पेस क्रिएट करने का अर्थ है अपने लिए स्थान बनाना।


जैसे हम कहीं भीड़ में हैं, आस-पास का स्थान विल्कुल भरा है। तिल रखने तक की जगह नहीं बची हो तो चाहते हुए भी हम मुवमेंट नहीं कर सकते।


इसी तरह यदि हमारी सोच में, चिन्तन में बहुत भीड़ है, सारे विचार गड्डु मड्डु हैं, एक-दूसरे से टकराते गिरते पड़ते हैं तो जीवन में वे उसी तरह परिलक्षित होंगे। स्पेस जीवन को कलात्मकता प्रदान करता है।


(क्यूंकि भीड़ हमेशा सार्थक नहीं होती और न ही सही ढंग से सोच पाने का मौका देती है)



रिक्त स्थान, अन्तराल या स्पेस-इसे यूँ भी समझा जा सकता है कि यदि कोई कमरा बहुत सारी वस्तुओं से बेतरतीबी से भरा हो तो वस्तुएं चाहे कितनी सुन्दर और मूल्यवान ही क्यूं न हों, बहुत अच्छा प्रभाव क्रिएट नहीं कर पाएंगी। लेकिन यदि उस स्थान या स्पेस का महत्त्व और सौन्दर्य को समझते हुए उन्हें कलात्मक ढंग से संयोजित किया जाए तो वही जगह और वही वस्तुएं सुन्दर और अच्छा प्रभाव उत्पन्न करेंगी।


इसी तरह किसी पहाड़ी या ऐसी ही किसी शान्त इलाके की खामोशी, सौन्दर्य और उसका खालीपन, मन को कितना भाता है। तब हम अपने भीतर गुणात्मक विस्तार महसूस करते हैं। पर उसी स्थान पर यदि बहुत लोगों का जमावड़ा हो तो वही जगह फिर उतना अपील नहीं करेगी।


एक तो मनुष्य जीवन ऊपर से सृजन की छटपटाहट यानी दोहरा दायित्व यानी कलाकार का दायित्व।


हर कलाकार को अपनी सृजनात्मक छटपटाहट को व्यक्त करने के लिए किसी-न-किसी स्पेस की जरूरत होती है। चित्रकार कैनवस को अपना माध्यम चुनता है।


सजनशील लोग या कलाकारों के लिए यह ईश्वर का आशीर्वाद है कि उन्हें स्पेस मिला (दिया)।


कलाकार के समक्ष जो विस्तृत वितान (आकाश) रखा हुआ है, जिस पर हमें अपने भीतर को उतने ही संवेदशील ढंग से पेण्ट करना है, जितना हम खुद-मेंखुद को महसूस करते हैं।


१. यदि हमारे भीतर की दुनिया में वैसी ही अव्यवस्थित भीड़ है। वैसे ही गड्डु मड्डु होते रूपाकार हैं, जैसे कि सचमुच भीड़ हमें दिखाई देती है तो हम उस वितान, फलक या स्पेस का कितना बेहतर इस्तेमाल कर पाएंगे, पता नहीं।


२. स्पेस क्या है, को जानने के साथ स्पेस से जुड़ाव महसूस करना, उसकी संवेदनशीलता, सूक्ष्मता को जानना-समझना और अपने भीतर जज्ब कर लेना हर चित्रकार के लिये बेहद जरूरी है।


कलाकार के समक्ष रखा श्वेत फलक उतना ही जीवित है जितनी हमारे भीतर की अभिव्यक्तियाँ। जो कैनवस पर उतना चाहती हैं।


मस्तिष्क में विचरण करते मूर्त-अमूर्त भावों के वितान पर आते-आते क्या रूप ग्रहीत होना चाहिए और कितने अंशों में अंकित हो, इसके लिए हमारी अभिव्यक्ति और दृश्यात्मक भाषा का अव्यक्त, सूक्ष्म और प्रभावशाली होना आवश्यक है।


हम अनेक चीजों को अपनी आंखों से देखते हैं जैसे आसमान, चिड़िया, पेड़, पहाड़, सड़क और घर इत्यादि। आंख जितना स्पेस क्रिएट करती है, उसमें यह सब शामिल हुआ। यानी बहुत सारे भिन्न-भिन्न रूपाकार या एलीमेंट्स।


लेकिन जब कैनवस पर रचित करने चलते हैं तो हमें यह ध्यान रखना होता है कि उन तमाम इच्छित वस्तुओं को छोटे से विस्तार या फलक पर किस तरह योजित करें और कितना करें कि उसमें सांस लेने की। गुंजाइश वाकी रहे और चित्र आंखों को उतना ही जीवन्त लगे जैसे कि दुनिया हमें दिखाई देती है।


हम सभी इस बात से परिचित हैं कि कोरा कैनवस । प्रदत्त स्पेस है, जो खामोश है, शून्य है। मगर भाव शून्य नहीं। उसमें भी तमाम किस्म के एहसासात छुपे हैं। उन एहसासों को अपने भीतर महसूस करते हुए अपनी अभिव्यक्ति को उसमें इस तरह पिरोया जाए कि स्पेस की खामोशी या उसमें अन्तर्निहित भाव चित्रित एलीमेंटस को सपोर्ट करे। यानी गुणवत्ता के उच्च स्तर को बनाए रखने  में सहयोग दे।


स्पेस का कलात्मक प्रयोग उसका बैलेंस, उसका डिवीजन किसी भी चित्र के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण फैक्टर है। स्पेस की सादगी, खामोशी और उसकी चंचलता का भी खूबसूरती से इस्तेमाल, चित्रकार के लगातार सृजनकर्म करते रहन से ही सम्भव है। अपनी एकाग्रता, संयम, अनुभव, निरीक्षण, संवेदनशीलता से धीरे-धीरे इसका बेहतर इस्तेमाल करने का अभ्यास होता जाता है।


कितना रचना है और कितना खाली छोड़ देना है। रिक्त स्थान और चित्रित तत्त्वों के बीच क्या और कैसा सम्बन्ध निर्मित हो रहा है। उनके बीच लय या सिम्फोनी क्रिएट हो रही है, वे एक-दूसरे के पूरक बन रहे हैं अथवा नहीं, यह जानना समझना महत्त्वपूर्ण है।


स्पेस और चित्रित एलीमेंटस के बीच लय एवं सादगी का जो संतुलन बनता है वह कृति को महान बनाता है।


अनेक मशहूर चित्रकार हैं जिनके चित्रों में स्पेस का सादगी के साथ सुन्दर सन्तुलन और विभाजन दिखाई देता है।


तैय्यब मेहता, जे. स्वामीनाथन, हकू शाह, गायतोण्डे, रजा, सूजा, गाडे, हुसैन, मैड़ियन, पॉल क्ली, नसरीन, मुहम्मदी, जरीना हाशमी आदि कलाकारों की लम्बी फेहरिस्त है।


मुझे इन कलाकारों की कृतियों में स्पेस का उतना ही महत्त्व प्रतीत होता है जितना कि चित्रित एलीमेंटस का।


और हम कलाकार अक्सर स्पेस की संवेदनशीलता को समझ नहीं पाते और पूरा कैनवस भरने की जुगत में लगे रहते है। सारे स्पेस को सारे स्थान को एक जैसा भर देने की कवायद, क्या कम हो, क्या ज्यादा हो, को नजरअंदाज करते हएं। यह अन्तर समझ पाना, यही साधना है, तप है किसी कलाकार के लिए।


सम्पर्क : बी-८७ (प्रथम तल), सेक्टर-२३, नोएडा-२०१३०७ (गौतमबुद्ध नगर)