जन्म १ जनवरी १९४९ को गोरखपुर के गांव खोराबार में। साहित्य सृजन की शुरुआत किशोर जीवन से। हिन्दी और उर्दू की विभिन्न पत्रिकाओं और अखबारों में प्रकाशन १९७० से अब तक। गजलों का संकलन ‘राख की जो पर्त अंगारों प' हैसन् २००० में प्रकाशित।
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हम चाहते रहे कि कोई ढंग की बात हो
वो पूछते रहे कि कहो कौन जात हो
यू टेढा-मेढा होता है वो मेरी प्यास पर
जैसे कि आदमी न हो. दजला-फरात हो
मिलते हैं लोग खुल के हरेक से यहां मगर
होते हैं साथ उसके हवा जिसके साथ हो
उसको भी है पता कि चढ़ी जा रही है रेत
पर चाहती नहीं है नदी उस पर बात हो
उठती है जब भी बात कि है कौन किस तरफ़
क्यों बोलते नहीं हो कि तुम किसके साथ हो
इस भागते समय में, जहां सव है गर्द-गर्द
इतना भी कम नहीं जो कोई अपने साथ हो
यह क्या कि हाथ खींच के बैठे हैं यार लोग
कुछ चोट-वोट चलती रहे घात-बात हो..