कोई हंस-बोल कर निकलता है
कोई छाती प’ मूंग दलता है।
देखकर कुछ पता नहीं चलता
किसके पैरों से कौन चलता है।
मोम है आदमी न बर्फ मगर
देखिए छू के, तो पिघलता है।
दुख की सूरत वही नहीं रहती
तुमको लगता है दिन बदलता है।
कम न समझो इसे भी आफ़त से
हममें-तुममें जो ये सरलता है
कौन है, जिससे बांधिए उम्मीद
हमको, यह वोट तक तो छलता है।
आदमी भी वही है उतना बड़ा
जिसकी जितनी बड़ी सफलता है..