कविता- सीखना - नीरज नीर
सीखना
सबने कहा
फलों से सीखो मुस्कुराना
हवाओं से खुशबू फैलाना
भँवरों से सीखो करना प्यार
शेरों से बहादुरी
वृक्षों से देना छाया
नदियों से बहना
पर्वत से अटल रहना
पृथ्वी से सहनशीलता
कुत्तों से वफादारी
और फिर सीखने वाली
एक लंबी सूची उन्होने मुझे पकड़ाई
मैंने पूरी सूची को जाँचा
कई-कई बार
पर इस समूची सूची में
आदमी कहीं नहीं था।
क्या अब कुछ भी नहीं बचा
जो सीखा जा सके आदमी से?
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