कविता- फूल और काँटे - नीरज नीर
फूल और काँटे
फूलों को मूल्यहीन बताकर
रोपे गए काँटे,
गिनवाए गए उनके फायदे
विचित्र नामों के साथ
बेचे गए ऊँचे मूल्य पर...
फूल अपनी समस्त सुगंधों
और सुंदरता के बाद भी
बिखरे हैं घास के मैदानों में,
बिक रहे हैं
लँगड़े घोड़ों की तरह...
हम घूम रहे हैं
काँटों को सर माथे पर उठाए
विजेता भाव के साथ
काँटे बन गए हैं
हमारा स्टेटस सिम्बल
ठगे जाकर भी
जीतने का एहसास दिलाना
बाजार की बड़ी कला है
काँटे बड़-बड़े स्टोरों में
सजाये जा रहे हैं
नए चमकीले पैकिंग में।
सम्पर्क : "आशीर्वाद", बुद्ध विहार, पोस्ट ऑफिस-अशोक नगर,
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