शैलेंद्र शांत जन्म : 5.10.1956 जन्म स्थान : उत्तर प्रदेश के बलिया जिले का मनियर नामक कस्बा शिक्षा : हिंदी में स्नातकोत्तर-इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किताबें : पांच कविता संग्रह जनपथ, मैं हूं तुम्हारी कविता, अपने ही देश में, चकाचौंध का अंधेरा और भरोसे की बात और अन्य कविताएंएक लघु उपन्यास-आधी हकीकत। संपादक (कोलकाता क्षेत्र) से अवकाश प्राप्ति। संप्रति : स्वतंत्र लेखन
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कविता - गलत! - शैलेंद्र शांत
गलत!
पूरा देश
खुशी नहीं मना रहा था
बहुत से लोग दुखी थे
जो दुखी थे, वे न्याय के पक्षधर थे
वे अन्याय के खिलाफ नहीं थे, ऐसी बात नहीं थी
जंगल, राजशाही, तानाशाही के अनगिनत क्रूर कथाओं के जो पाठक थे,
वे उन्हीं वीर गाथाओं के काल में नहीं लौटना चाहते थे, जब लोग हाथी से
कुचलवा दिए जाते थे, शेर के पिंजरे में डाल दिए जाते थे,
पत्थरों की बरसात में
चीखते रह जाते थे, लोकतंत्र के आने के बाद भी क्रूरताओं का सिलसिला थमा नहीं,
और न्याय कसौटियों में कसा जाता रहा, जो देता रहा परीक्षा अनवर, पर विश्वास लौटा,
आस्था पैदा हुई कि दंड की न्यायिक प्रक्रिया को जारी रखा जाना चाहिए, गुनाह के आरोपों को
जांचे परखे बगैर किसी को भी दंडित करना उचित नहीं, ठीक नहीं, न्याय संगत नहीं...
जो इन बातों में यकीन रखते हैं, दुखी थे और देश में ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं थी,
इनमें देश के न्यायाधीशों समेत आम लोग सभी शामिल थे, हैं, रहना चाहिए।
जुल्मों के खिलाफ कठोर जंग से हासिल चीज को कोई भी देश खोना नहीं चाह सकता,
जिन्हें इस बात का अहसास था, वे दुखी थे...दुखी थे कि जो ताकतवर थे तमाम गुनाहों के
बावजूद या तो पकड़े नहीं जाते और पकड़े जाते तो बाइज्जत रिहा कर दिए जाते थे,
इनका कोई एनकाउंटर नहीं होता था कभी, हालांकि जो दुखी थे, इस तरीके के पक्ष में नहीं थे,
वे उनके खिलाफ थे और उनके लिए कड़ी सजा के तलबगार थे, पर अदालतों के जरिए, जजों की कलम से...
संपर्क : द्वारा, आरती श्रीवास्तव, जीवनदीप अपार्टमेंट, तीसरी मंजिल, 36, सबुज पल्ली, देशप्रियनगर, बेलघरिया, कोलकाता-700056, पश्चिम बंगाल मो.नं. : 9903146990