संपादकीय - बच्चन को उनका हक नहीं मिला! - गोपाल रजन

संपादकीय - अपनी बात -  बच्चन को उनका हक नहीं मिला! - गोपाल रजन


 


              लगभग चालीस साल पहले जब मैं इलाहाबाद नौकरी करने आया तो मुझे राजापुर के जिस मकान में जगह मिली, वह क्लाइव रोड पर ही था। दफ़्तर जाते वक्त हमेशा उस बंगले के सामने से गुजरना होता था जिसमें कभी बच्चन जी रहा करते थे। उन दिनों इलाहाबाद बंगलों का शहर हुआ करता था और प्रायः उन बंगलों के गेट बंद ही नजर आते थे। परंतु १७ नं. का वह बंगला तो हमेशा बंद ही नजर आया, फिर भी मैं हमेशा उस बंगले की ओर देखता था आते और जाते हुए।


                उन दिनों इलाहाबाद भरा-पुरा था। शायद ही कोई बैठकी हो जहाँ लेखकों पर चर्चा न होती हो पर आश्चर्य, बच्चन पर कोई बात ही नहीं होती थी। बच्चन की आत्मकथा ने मुझे प्रभावित किया था और मुझे उनका लेखन गंभीर, अर्थपूर्ण लगा था हालाँकि मधुशाला के प्रति कभी लगाव नहीं हुआ पर विडम्बना यह कि बच्चन का जिक्र मधुशाला को लेकर ही किया जाता रहा है।


              इलाहाबाद से दूरी बच्चन ने बनाई या इलाहाबाद ने बच्चन से बनाई, यह विवाद का विषय हो सकता है लेकिन यह भी सच है कि निराला की तुलना में बच्चन ज्यादा इलाहाबादी थे। परन्तु इलाहाबाद की चर्चा होते ही निराला का जिक्र होने लगता है। निराला से बच्चन की तुलना की कोई बात नहीं। लेकिन यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि बच्चन को उनका हक नहीं मिला


              इलाहाबाद की ख़ास बात यह है कि यहां कोई एक साल रहा हो या पूरी उम्र यहां गुजारी हो, यह अपना ठप्पा लगाने से गुरेज नहीं करता। लेकिन विजय देव नारायण साही जैसे चंद लेखकों को छोड़ दिया जाए तो अन्य किसी ने गंभीरता से बच्चन की चर्चा नहीं की। पता नहीं क्यो? इस शहर में रहते हुए भी उन्हें विरोध का ही अधिक सामना करना पड़ा और जब उन्हें दिल्ली जाने का अवसर मिला तो उन्हें यह शहर छोड़ने में कोई दु:ख नहीं हुआ।


            १८ जनवरी बच्चन जी की पुण्यतिथि है। इस अंक के माध्यम से उन्हें हम श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहते हैं।


            २०१९ के अंत ने हमसे कई विभूतियों को छीन लिया। कहानीकार स्वयं प्रकाश, आलोचक, लेखक गंगा प्रसाद विमल और उस्ताद अकील रिजवी साहब को हमने खो दिया। सृजन सरोकार परिवार की ओर से श्रद्धांजलि!