कविता - ख्वाहिश - माधुरी चित्रांशी
ख्वाहिश
लाख कोशिशें की-
हमने तुम्हें भुलाने की।
मगर...
मेरी ख्वाहिशों की भी,
अजीब सी,
एक ज़िद है
हर ख्वाब में,
हर साँस में,
हर धड़कन में,
बस-
तुम ही तुम रहो।
कहीं, कोई,
कुछ और नहीं।
ऐ भगवन्!
चुरा तो लिया है तूने,
परियों सी मेरी-
बेटी को।
पर कैसे चुरा पाओगे?
मेरे अंश से बने-
मेरे अंश को।
वह तो आज भी-
मेरे रोम-रोम में है,
समाई हुई।
मेरे संग सोती है।
मेरे संग जगती है।
सीने से लगी,
हर पल-
धड़कती रहती है
लाख कोशिशें की-
हमने तुम्हें भुलाने की।
पर...
मेरे ख्वाहिशों की भी,
अजीब सी,
एक ज़िद है।
हर ख्वाब में,
हर साँस में,
हर धड़कन में,
बसतुम ही तुम रहो-
कहीं, कोई,
कुछ और नहीं।
माधुरी चित्रांशी