कविता - केश सफेद हैं, - युगेश कुमार
1.केश सफेद हैं,
कुछ तेरे कुछ मेरे
जज्बातों के शैलाब को ओढे
मैं निकल पड़ा तेरे ख्वाब को ओढे
रास्ते में बिखर गई वो पोटली,और टूट गए
कुछ सपने,कुछ तेरे कुछ मेरे।
दरख्तों के रास्ते जाती वो पगडंडी,याद है
पैरों के निशान पड़े थे,कुछ तेरे कुछ मेरे
वो स्पर्श था,आलिंगन था,प्रेम था
जज़्बात थे,कुछ तेरे कुछ मेरे।
याद है जब ना समझी में तोहफे लेकर आया
तुमने पूछा कौन सा लूँ,ये भी तेरे वो भी तेरे
तुम्हारे सुंदर मेहंदी को बिगाड़ती मेरी आजमाईश
हमारे अटूट प्यार के बीच न आती
कुछ कमियाँ हैं, कुछ तेरे कुछ मेरे।
मेरी गुस्ताखी के बाद भी जो बची थी वो खूबसूरत आकृतियाँ
तुमने पूछा और ये क्या हैं
ये अच्छाइयाँ हैं जो जोड़ती हैं हमें
बहुत कम हैं मेरे ,बहुत से हैं तेरे।
बहुत कुछ जो देखा जिंदगी में कुछ सपने टूटते
पर बहुत से जीते,मैंने तेरे और तुमने मेरे
जब भी दो राह आये जिंदगी की राह में
हाँथ पकड़े,तूने मेरे मैंने तेरे।
आज अरसा बीता हम साथ हैं
पता है,केश सफेद हैं,कुछ तेरे कुछ मेरे।
©युगेश
आपका आभारी,
युगेश कुमार
सहायक मंडल विद्युत अभियंता,
भारतीय रेल
पता - चंद्रपुरा, झारखंड
9718437588