कविता - एक मेहनतकश करता है ,विश्वविद्यालय का निर्माण - आलोक मिश्र'
एक मेहनतकश करता है ,विश्वविद्यालय का निर्माण
जानते हो विश्वविद्यालय का निर्माण कैसे होता है?
इसमे मज़दूर का ख़ून-पसीना लगता है
इसमे कारीगर बरसों माथा खपाता है
इसमे माली रोपता है सुगन्धित पुष्प का हरा पौधा
यकीन मानों एक विश्वविद्यालय का निर्माण यूहीं नहीं होता।
मज़दूर इसकी नींव में भरता है, सपना
जो शताब्दियों तक एक विश्वविद्यालय को अपने कंधो पर संभाल कर रखता है।
कारीगर दिन रात की मेहनत के पश्चात
करता है आकलन कि ढ़ालता है, मूल्यों के गारे से इसके अड़िग स्तम्भ
कि एक माली अनथक पोषता है
बेहद करीने से एक-एक पुष्प
यक़ीन मानों एक विश्वविद्यालय का निर्माण यूहीं नहीं होता।
कि एक मज़दूर इंसाफ की भट्टी से तपा कर निकाली हुई ईंट से करता है खड़ी, विश्वविद्यालय की दीवार
और दीवार पर की गयी नक्काशी
इसकी अमरता का प्रतीक है
कि विश्वविद्यालय की छत के छड़ में लगा लोहा
संभालता है एक नया कल
और उस मज़दूर के टपके
पसीने की गंध महकाती है, सदियों
एक मज़दूर का संघर्ष
हां फिर कहता हूं,
एक विश्वविद्यालय का निर्माण यूहीं नहीं होता।
एक मेहनतकश करता है
विश्वविद्यालय का निर्माण।
आलोक मिश्र फ़िलहाल मैं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का एम.फिल का विद्यार्थी हूं। मैंने स्नातक और परास्नातक(राजनीति विज्ञान) की शिक्षा काशी हिन्दू विश्विद्यालय से ग्रहण की है। मैं झारखंड के देवघर जिले का रहने वाला हूं।
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