कविता - बिन तुम्हारे -  माधुरी चित्रांशी

कविता - बिन तुम्हारे -  माधुरी चित्रांशी


 


बिन तुम्हारे


 


दिल कहीं लगता नहीं है,


बिन तुम्हारे।


क्या करूँ?


कैसे जिऊँ मैं,


बिन तुम्हारे।


चंचल सी वो आँखें,


शबनम सी वो हंसी,


कौन सुनायेगा?


किससे सुनूँ मैं,


प्यारी वो बातें,


बिन तुम्हारे।


दिल कहीं लगता नहीं है,


बिन तुम्हारे।


लोग कहते हैं-


"आईना होती है ज़िन्दगी"।


रोने पर रो देती है।


मुस्कराने पर,


मुस्करा देती है-


ज़िन्दगी।


पर......


रोने के तो,


लाख बहाने हो सकते हैं।


मगर.....


मुस्कराने के लिये तो-


कोई वज़ह चाहिये।


वजह कहाँ-


बची है कोई,


तुम्हारे जाने के बाद?


बेवजह कोई-


कैसे मुस्कराये-


बिन तुम्हारे?


दिल कहीं लगता नहीं है,


बिन तुम्हारे।


क्या करूँ?


कैसे जिऊँ मैं-


बिन तुम्हारे?


 


                          माधुरी चित्रांशी