कविता - बच्चे - मुकेश कुमार
शोधार्थी एम. फिल), हिन्दी विभाग, अम्बेडकर भवन हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय
बच्चे
हमारे समय के बच्चे
परिश्रमी और मेहनतकश होकर
खुद के जीवन को बदलना चाहते थे,
लेकिन
विज्ञापनों की इस रंगीन दुनिया से
उनके दिमाग में
केवल एक ही बात घर कर चुकी है कि
उनकी जिन्दगी
बदल जाएगी एकाएक
फिल्म में दिखाये
दृश्यों की तरह।
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