कविता - जहाँ सही मायने में ज़िन्दगी बसती है- जुगेश कुमार गुप्ता

कविता - जहाँ सही मायने में ज़िन्दगी बसती है- जुगेश कुमार गुप्ता


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मै निकलती हूँ, तलाश में,


जहाँ वाजिब अभिव्यक्ति पहुँच सके,


कदमों को बिना रोके,


ऐसे रास्तों पर चली जाती हूँ,


जहाँ खुद को समझा सकूँ,


और कुछ कर सकूँ उनके लिए,


जिनकी हथेलियों में गहरे दरख़्त उभरे हैं


जिन्होंने इस जहाँ को सजाया,


इसे एक खूबसूरत जहाँ बनाया,


मैं उनकी झोपड़ी की मिट्टी से,


बचपन की यादों को मखमली करते हुए,


डूब जाती हूँ उन फिज़ाओं में,


जहाँ सही मायने में ज़िन्दगी बसती है।


                                          जुगेश कुमार गुप्ता, शोध छात्र, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, 9369242041


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