कविताएं




 

ऐसा क्या मोड़


कुछ छोटे नगर

क़स्बे

और गांव डूबे

कुछ डूब रहे हैं

 

उनको डुबोना ज़रूरी समझा गया

खेतों की तरफ़

पानी के निकास के लिए

और अन्यान्य विकास के लिए

जिससे अर्थव्यवस्था में एक उभार आया

लेकिन ऐसा क्या मोड़ सरकार आया

कि डूब रही है आज

अर्थव्यवस्था भी


 

धर्म की चुप्पी

धर्म​ नहीं कहेगा तुम शराब पियो

धर्म नहीं कहेगा तुम झूठ बोलो

धर्म नहीं कहेगा तुम अय्याशी करो

धर्म नहीं कहेगा तुम युयुत्सु बनो

धर्म नहीं कहेगा तुम शक्तियों का बेजा इस्तेमाल करो

 

तुम मिथकों का सहारा ले लोगे

जिनके सहारे चलता है धर्म

 

कर्म के लिए स्वतंत्र हो तुम

भोग के लिए मुक्त

तुमने यह बात गांठ बांध ली है

तो धर्म ने भी चुप्पी साध ली है

 




ऐसा भार

मनुष्य पर भार था

ज्ञान प्राप्त करने का

मनुष्य पर भार था

अंधेरा समाप्त करने का

 

मनुष्य पर भार था

सारी दुनिया को

संवारने का

मनुष्य पर भार था

अपने पड़ोसी को

दुलारने का

 

ऐसा भार

न पहाड़ पर था

न नदी पर

न पेड़ों पर

न पशुओं पर

न पंछियों पर

न मछलियों पर

 

ऐसा भार

सिर्फ़ मनुष्य पर था

 

ऐसा भार

सिर्फ़ मनुष्य पर है

 

ऐसा भार

सिर्फ़ मनुष्य पर रहेगा

 






जन्म तिथि - 23-08-1960 

प्रकाशित कृतियां- तालाब के पानी में लड़की  (कविता संग्रह), जिधर खुला व्योम होता है  (कविता संग्रह), दर्द के खेत में  (ग़ज़ल संग्रह), कड़ी धूप में (हाइकु संग्रह), एक उत्तर-आधुनिक ऋचा (कवितासंग्रह), दूरी मिट गयी  (कविता संग्रह), क़दम-क़दम ( चुनी हुई कविताएं), न संगीत न फूल ( कविता संग्रह), गगन नीला धरा धानी नहीं है ( ग़ज़ल संग्रह )

 

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