कविता  - वो सही थे......सुशांत मिश्र 

 कविता  - वो सही थे......सुशांत मिश्र 


 


वो सही थे


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आज की तरह कल भी नींव खोदी जाएँगी
और फिर 
मिट्टी, ईंटों और मसालों से बनायीं जाएँगी कुछ दीवारें 
दीवारों से बनाये जायेंगे मकान...बस मकान..


मकान के अंदर होंगी,
हड्डियों,खून और माँस के लोथड़ों से बनी कुछ चलती-फिरती लाशें
आँखे खुली होंगी उनकी
फिर भी नहीं देख पाएंगे एक-दूसरे को
वो व्यस्त होंगे
मकान के एक-एक कोने पर अपना आधिपत्य करने में
उस कोने में बनाएंगे वे कल्पना की एक नयी दुनिया


वे खाएंगे कल्पनाओं को
ओढ़ेंगे उससे बनी चादरें
वो करेंगे कुछ कर्म स्वयं के लिये
जिससे वो खुश रह सकें
वे होंगे स्वयं के देवता
मनुष्य जो दूसरों के लिए जी रहा है,
जियेगा तब भी,किन्तु स्वयं के लिये


वो अपने वर्तमान में लिख गये आज का भविष्य
हमने उन्हें सत्य सिद्ध किया...
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                           #सुशान्त_मिश्र


                          सुशांत मिश्र ,ग्राम- नगरा (दरी),पोस्ट-संडिलवा ,ज़िला- लखीमपुर खीरी- २६२७२७