कविता - प्रेम - कृष्ण चन्द्र महादेविया
प्रेम
कोयल की कूक भरने
कौवे की चोंच
लूंगने के माफिक
डाली-डाली पर घुग्घी के
फड़फड़ाने की तरह
धोंकनी बनी सांसों के साथ
कदली पर चढ़ कर
फिर शून्य में बदलकर
कटे दरख्त की तरह
ढह जाने को
कहेंगे प्यार क्या।
झुकी-झुकी पलकें
ज्यों अधखिली कचनार
मक्खनी स्पर्श में
लटकी-झटकी अलकें
पुष्प और गंध की तरह
एकाकार हो जाने
जीने के लिए
मधुर-मधुर ख्वाब सजाने
गतिशील रूहें हो जाने को
कहेंगे प्यार क्या।
आप जी बोलें
अमर प्रेम
किस श्रेणी के
तराजू में बोलें
सम्पर्क : डाकघर महादेव, सुन्दरनगर, जिला मण्डी, हिमाचल प्रदेश पिन कोड-175018
मो.नं. : ८६७९१५६४५५ - कृष्ण चन्द्र महादेविया