कविता -  पानी का पुल  - विशाखा मुलमुले 

कविता -  पानी का पुल  - विशाखा मुलमुले 


 


  पानी का पुल 


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मैं तुम्हें आब से चीन्हती हूँ 


तुम मुझे मेरी करुणा से 


दोआब पर बैठे हम शांत समय में


संगम पर पाँव पखारते हैं 


 


जब टूटकर बिखरतें हैं तुम्हारे आसूँ 


छलक उठती है मेरे नैनो से गंगा - जमुना 


हर बार तेरी आँख से टपका मोती


बन जाता मेरी आँख का पानी


 


मीलों - मीलों खारे जल में 


नीले - नीले दर्द के पल में 


फ़ासला हो तब भी सुन लेते हैं हम पुकार 


जैसे सुन लेती है खारे जल की सबसे वृहद मछली


 


रक्त संबंध से नही जुड़े हम 


पानी का पुल है हमारे मध्य 


और दो अनुरागी साध लेते है 


पानी पर चलने की सबसे सरलतम कला !


 


                                                                       विशाखा मुलमुले , छत्तीसगढ़ , 9511908855