कविता - नदी ----- कभी नहीं ठहरी - यामिनी 'नयन' गुप्ता,
नदी ----- कभी नहीं ठहरी
स्त्री ---- एक नदी
जो युगों से वहती निधि
नेह, समर्पण विखेरती
निर्धारित वर्जानाएं ढोती
तुम्हारी कुंठाएं बटोरती।
जिधर पाती ढलान
ठुलकती जाती
इसे रोको नहीं
बांधो नहीं
बहने दो अविराम।
तोडो नहीं इसके मान को
बांधो नहीं इसके बांध को
नकारो नहीं अभिमान को
कुचलो नहीं
स्वाभिमान को।
वह अशक्त नहीं वरन्
विवश है जकड़ी हुई
मर्यादा, कूल की वेडी से
निरंतर जूझती वह
राह के पाषाणों से।
सतत बहने बहते जाने की
परंपरा है दोनों की,
बहते रहना अबाध
ही जीवन है
हम इसके ऋणी हैं।
सम्पर्क : यामिनी 'नयन' गुप्ता, सिविल लाइंस रामपुर-२४४९०१, उत्तर प्रदेश मो.नं. : ९२१९६९८१२०