कविता - मेरी प्यारी दोस्त - गौरव भारती,

कविता -    मेरी प्यारी दोस्त - गौरव भारती, 


 


मेरी प्यारी दोस्त


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मुझे पता है


तुम्हें चाहिए बस एक जोड़ी आँखें


जिसमें तुम खुद को निहार सको


और महसूस कर सको


आँसुओं की चंद बूदें


अपने कांधे पर


जो सिर्फ तुम्हारे लिए बहे हों


 


मुझे पता है


तुम्हें चाहिए एक खुला आकाश


जिसमें तुम मनचाहे तारें टांक सको


और रंग सको सूरज को उन रंगों से


जो तुमने बचपन में


तितलियों के पीछे भागते हुए जमा की होंगी


 


मुझे पता है


तुम्हें चाहिए एक घर


जहाँ थककर लौटा जा सके


उसी तरह


जैसे लौटते हैं 'पिता'


 


मुझे पता है यह सब


क्योंकि मेरी माँ को भी यही चाहिए था


और शायद माँ की माँ को भी


 


मेरी प्यारी दोस्त


ख़्वाब और हकीकत के बीच


एक दूरी होती है


तुम्हें वह दूरी तय करनी है


तुम्हें चौखटें गिरानी हैं...


                                          गौरव भारती, शोधार्थी, भारतीय भाषा केंद्र , जे.एन.यू., कमरा संख्या-108,


                                            झेलम छात्रावास , जे.एन.यू., पिन-110067, मो0- 9015326408