कविता - मेरी प्यारी दोस्त - गौरव भारती,
मेरी प्यारी दोस्त
______________
मुझे पता है
तुम्हें चाहिए बस एक जोड़ी आँखें
जिसमें तुम खुद को निहार सको
और महसूस कर सको
आँसुओं की चंद बूदें
अपने कांधे पर
जो सिर्फ तुम्हारे लिए बहे हों
मुझे पता है
तुम्हें चाहिए एक खुला आकाश
जिसमें तुम मनचाहे तारें टांक सको
और रंग सको सूरज को उन रंगों से
जो तुमने बचपन में
तितलियों के पीछे भागते हुए जमा की होंगी
मुझे पता है
तुम्हें चाहिए एक घर
जहाँ थककर लौटा जा सके
उसी तरह
जैसे लौटते हैं 'पिता'
मुझे पता है यह सब
क्योंकि मेरी माँ को भी यही चाहिए था
और शायद माँ की माँ को भी
मेरी प्यारी दोस्त
ख़्वाब और हकीकत के बीच
एक दूरी होती है
तुम्हें वह दूरी तय करनी है
तुम्हें चौखटें गिरानी हैं...
गौरव भारती, शोधार्थी, भारतीय भाषा केंद्र , जे.एन.यू., कमरा संख्या-108,
झेलम छात्रावास , जे.एन.यू., पिन-110067, मो0- 9015326408