कविता - खोल दूं आज का यह दिन ----- - यामिनी 'नयन' गुप्ता,
खोल दूं आज का यह दिन -----
यामिनी ने
ओढ ली है एक चादर
उजले चांद की
कि स्याह अंधेरा तनहाई का
अब डराता नहीं
झील में फेंके पत्थर सरीखे
मौन मन का अव
किसी आहट पर थरथराता नहीं1
एहसासों की
कुछ अदद करवटें हैं
चाहतों की
कुछ अदद सिलवटें हैं
एक अरसे से सांसें रहीं मगन
हवाओं को पकड़ने में
एक जमीं वजूद की
मैं तलाशती रही।
जब कभी
चुप्पी पसर जाती है आस-पास
एक चांदनी रात में
उस को समेट कर
मैं बुनने लगती हूं एक ख्वाब
या कि एक चादर शब्दों की
या एक खेस किसी के
गुनगुनाहट भरे स्पर्श का1
मेरे मन आंगन में
वीज सूरजमुखी के
छितरे पड़े हैं और
हर पहली किरण के साथ
एक बीज अंकुरित हो उठता है
नवजीवन की आशा को लेकर साथ
एक और खूबसूरत सा दिन
मैं पाती हूं अपने सिरहाने----प्रतिदिन
सम्पर्क : यामिनी 'नयन' गुप्ता, सिविल लाइंस रामपुर-२४४९०१, उत्तर प्रदेश मो.नं. : ९२१९६९८१२०