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कविता - इतिहास में - विशाखा मुलमुले
इतिहास में
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दिवसावसान के कुछ क्षणों पहले
चहक भरी पुकार लिए आती हैं नन्हीं गौरैया मेरे घर के आंगन में
उनकी चहक भूख के लिए और मेरी भूख चहक के लिए
हम दोनों के मध्य रहते हैं कई कपोत
कपोत , कल्पना वाले नहीं , वास्तविक
भूख मिटाने की प्रतिस्पर्धा लगी होती है
दिनभर कपोतों और गौरैया के मध्य
बाहुबली अक्सर ही विजय प्राप्त करतें है
स्त्रीयों की तरह गौरैया भी रह जाती हैं केवल साक्षी
हमारे युग के इतिहास में स्त्रियाँ एवं गौरैया
दर्ज होंगी केवल गवाह के तौर पर
भूख मिटाने के किसी साधन के तौर पर
स्त्रियाँ जो स्वयं विलुप्ति के कगार पर खड़ी थी
बचाती रहीं विलुप्त होती गौरैया की प्रजाति को
गौरैया जिन्हें मिलती रहीं अब भी स्त्री जाति की उपमाएँ
पर अफ़सोस ! बाहुबली ही लिखेंगे कलयुग का लेखा
और कुछ दो पन्नों में सिमट जाएगा हमारा इतिहास
विशाखा मुलमुले , छत्तीसगढ़ , 9511908855
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