कविता - अंत में - मोहन कुमार झा,
अंत में
हजार बरस सूखे के बाद ही सही
उजले बादल काले होंगे
और पानी जरुर बरसेगा
एक लम्बी काली रात के बाद ही सही
अंधेरे पर रौशनी की जीत होगी
और सूर्य का मुख जरुर दिखाई देगा
शताब्दियों के इंतजार के बाद ही सही
गर्दन पर रखी चाकू टूट जाएगी
और लोहा पानी से हार जाएगा
एक बहुत लम्बी चुप्पी के बाद ही सही
सन्नाटे को तोड़कर
शब्द जरुर बोलेंगे!
दुनिया की जीवित बुरी आत्माओं सुनो!
तुम्हारा और अधिक समय तक
नृत्यरत रह सकना कठिन है।
हारे हुए लोगो ने
दुनिया की मरी हुई पुण्य आत्माओं को जगाने के लिए
आह्वान करना शुरु कर दिया है
मंत्र काम करे न करे
मेहनत काम करेंगे।
यंत्र काम करे न करे
यत्न काम करेंगे
हमारे कर्म अपने-अपने फल के साथ लौटकर आएंगे
तुम विजेता हो
देखना,
अंत में तुम्हारा सर
हारे हुए लोगों के सामने शर्म से झुक न जाये !
सम्पर्क : मोहन कुमार झा, अररिया, बिहार