समीक्षा - ५१ साहित्यकारों के साक्षात्कारों का संग्रह : 'भेद खोलेगी बात ही' = डॉ. नेहा भाकुनी 

 


समीक्षा - ५१ साहित्यकारों के साक्षात्कारों का संग्रह : 'भेद खोलेगी बात ही' = डॉ. नेहा भाकुनी 


      "भेद खोलेगी बात ही' शीर्षक पुस्तक शशिभूषण बडोनी द्वारा प्रस्तुत हिन्दी के ५१ साहित्यकारों व कलाकारों के साक्षात्कारों का संग्रह है। इसमें उत्तराखंड के दिवंगत दिग्गज साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल से लेकर युवा लेखक मनोहर चमोली 'मनु' तक की पीढ़ी के लगभग सभी साहित्यकारों व कलाकारों से हुई बातचीत हमें पढ़ने को मिलती है। इस सूची में शामिल सभी लेखकों के नाम तो नहीं दिए जा सकते, फिर भी कुछ नामों का उल्लेख हम यहाँ पर कर रहे हैं : सर्व श्री विद्यासागर नौटियाल, सुभाष पंत, गंगा प्रसाद विमल, गुरदीप खुराना, लीलाधर जगूड़ी, देवेंद्र मेवाड़ी, बटरोही, मंगलेश डबराल, शेखर पाठक, दिनेश पाठक, देव सिंह पोखरिया, हरीश चन्द्र पांडे, बी. मोहन नेगी, महावीर रवाल्टा, राजेश सकलानी, जितेन ठाकुर, गीता गैरोला, कुसुम भट्ट, महेश दर्पण, गंभीर सिंह पालनी,नवीन नैथानी, दिनेश चन्द्र जोशी, अरुण कुमार असफल, नन्द किशोर हटवाल, राजेश पाल, हरी मृदुल, दिनेश कर्नाटक व शिरीष कुमार मौर्य आदि। इनमें से विद्यासागर नौटियाल व बी. मोहन नेगी अब इस दुनिया में नहीं हैं।


   


    पुस्तक के आरंभ में 'अपनी बात' के अंतर्गत संपादक शशि भूषण बडोनी कहते हैं कि एक रचनाकार अपनी रचनाओं में जो कुछ व्यक्त नहीं कर पाता है, उसे बातचीत में रेखांकित करता है। पश्चिमी देशों में साहित्य की कथेतर गद्य विधाओं ने साहित्य को खूब समृद्ध किया है। सृजनात्मकगद्य की तमाम छटाएँ वहाँ डायरी, संस्मरण, जीवनी, निबंध, रिपोर्ताज, आत्मकथा, यात्रा वृतांत और साक्षात्कार विधाओं में बखूबी देखी जा सकती हैं।.........लेखक या कलाकार चाहे जिस विधा या क्षेत्र से हों, उनसे बातचीत करते हुए उन्हें व उनकी सृजन-प्रक्रिया को और उनकी चिंताओं, सरोकारों को समझने की कोशिश मैंने की है। इस प्रकार इन भेंटवार्ताओं में रचनाकारों के व्यक्तित्व के कई महत्वपूर्ण पहलू भी संभवतः उजागर हुए हैं। कई रचनाकारों के बारे में नवीन और रुचिकर तथ्य भी अवश्य ही उजागर हुए होंगे।


      बातचीत के फलस्वरूप नवीन और रुचिकर तथ्य उजागर होने संबंधी बडोनी जी की बात कई साक्षात्कारों में उभर कर सामने आती है। विद्यासागर नौटियाल का दर्द इन पंक्तियों में साफ-साफ झलकता है, “पलायन का जो प्रश्न है, यह अपनी जगह गंभीर प्रश्न व विषय है। एक पलायन वह होता है, जो अपनी पृष्ठभूमि में अपने खड़े होने की जगह के बावजूद व्यक्ति अपने निजी उत्थान के लिए बाहर चला जाता है, लेकिन वह अपनी निजी संपत्ति से जुदा नहीं होता है........और एक पलायन वह है जिसमें आदमी को वहाँ से उखड़ने को मजबूर किया जाता है। ......... मैं अपने गाँव (टिहरी) में दुबारा नहीं गया। जहां मेरे डूबे गाँव को देखने के लिए बाहर से बड़े-बड़े पर्यटक व साहित्यकार भी वहाँ आते हैं-------डूबते हुए उस गाँव को देखते हैं.....और उस पर कविता,गीत लिखते हैं....आँसू टपकाते हैं......मरसिया गाते हैं। जब हम मर रहे थे.....तब तुम्हारा कहीं पता नहीं था।"


    लीलाधर जगूड़ी कहते हैं, “अक्सर यह पाया गया है कि पेशेवर कथा लेखकों की अपेक्षा कवियों ने ज्यादा श्रेष्ठ कहानियाँ लिखी हैं।"


    ___मंगलेश डबराल कहते हैं, "शायद लेखन के सभी पक्ष कठिन हैं। ......कई बार जो लिखना चाहता हूँ, वह नहीं लिखा जाता, बल्कि वह कुछ और ही शक्ल ले लेता है। दरअसल लिखने का सबसे कठिन और त्रासद पहलू यह है कि हम जिस शिद्दत से जो कुछ लिखने कि सोचते हैं, उससे ठीक से उस तरह नहीं लिख पाते। ....दिमाग और कागज के बीच एक बड़ी और अदृश्य दूरी है।"


    सुभाष पंत मानते हैं, “पुरस्कार चाहे वह विश्व का कितना ही बड़ा हो, लेखक के स्वाभिमान से बड़ा नहीं हो सकता।"


    देवेंद्र मेवाड़ी कहते हैं, "मेरे विचार से साहित्य पर कोई संकट नहीं है। दिल्ली व अन्य स्थानों पर लगे पुस्तक मेलों में मैंने वर्ष २०१७ में स्वयं देखा, स्टॉल पर भीड़ थी और लोग थैलों में भर कर किताबें ले जा रहे थे। नेट पर अच्छी पत्रिकाएँ आ रही हैं पर उन में वह बात कहाँ जो बात पुस्तकों व पत्रिकाओं में है। अच्छी पुस्तक और पत्रिका से पाठक का आत्मीय रिश्ता जुड़ जाता है जो नेट में संभव नहीं हो पाएगा।"


    अरुण कुमार 'असफल' मानते हैं, “हिन्दी में साहित्यकारों में साहस नहीं है। अगर वह कहानी भी लिखेंगे तो उस तरह की बोल्ड बात नहीं लिख पाते हैं जैसा कि अन्य भाषाओं में लेखक करते हैं। हिन्दी में सरकारी खरीद व घटिया रचनाकारों की आयोजित चर्चाओं से भी पाठक भ्रमित होता है।"


    इन साक्षात्कारों से हमें कई दिलचस्प जानकारियाँ मिलती हैं। कुछ का उल्लेख हम यहाँ करेंगे


    पद्म श्री से सम्मानित प्रो.शेखर पाठक एक शिक्षक की हैसियत से मिडिल स्कूल में अध्यापक भी रहे। उन्होंने बी.ए. प्रथम वर्ष की परीक्षा प्राइवेट अभ्यर्थी के रूप में उत्तीर्ण की और बी.ए. के दूसरे वर्ष की परीक्षा देने लखनऊ की एक नौकरी छोडकर अलमोड़ा आए।


    नैनीताल से एम.ए. कर के बटरोही जी निकले तो बनारस के लिए थे (डॉ. शिव प्रसाद सिंह के निर्देशन में शोध करने के मंसूबे से), पर शैलेश मटियानी जी के मोह उन्होंने इलाहाबाद की ट्रेन पकड़ ली और फिर इलाहाबाद ही में जम गए।


    'सारिका' पत्रिका द्वारा नवीन नैथानी की पहली कहानी 'पोखर' वर्ष १९८२ में प्रकाशनार्थ स्वीकृत की गई लेकिन यह उसमें प्रकाशित हुई जनवरी १९८८ में।


    १९९१ में वर्तमान साहित्य ' के कहानी महाविशेषांक (संपादक : रवींद्र कालिया) में प्रकाशित गंभीर सिंह पालनी की कहानी 'मेंढक' हिन्दी जगत में इतनी चर्चित हुई कि यह उनके नाम का पर्याय बन गई। एक बार जब वे गोवा भ्रमण के लिए गए तो पणजी में एक गलियारे से उन्हें अप्रत्याशित रूप से गुजरता देख गोवा विश्वविद्यालय में कार्यरत कहानीकार (प्रोफेसर) डॉ. रोहिताश्व ने उनका नाम एकाएक याद न आने पर चिल्लाकर उन्हें पुकारा, "मेंढक"। यह भी पता चलता है कि 'मेंढक', जिसे गंभीर सिंह पालनी की पहली कहानी समझा जाता है, वह उनकी पहली कहानी नहीं। उनकी पहली कहानी 'अभिमन्यु' उनके विद्यार्थी जीवन में ही 'कहानी' पत्रिका के नवंबर १९७८ अंक में प्रकाशित हुई थी। उस जमाने की इस प्रतिष्ठित के संपादक मुंशी प्रेमचंद के पुत्र श्रीपतराय थे।


    गीता गैरोला से हमें पता चलता है कि वृन्दावन लाल वर्मा का उपन्यास 'मृगनयनी' उन्होंने तब पढ़ लिया था जब वे कक्षा छ: में पढ़ती थीं और यह भी कि पिछले कुछ वर्षों से वे कैंसर से जूझ रही हैं लेकिन बीमार उनका शरीर हुआ है, दिल और दिमाग नहीं, और न ही इच्छा शक्ति। मेरी बीमारी और मेरी संस्था 'महिला समाख्या ' को बजट न मिलने के कारण उत्पन्न समस्याओं ने मेरी जिंदगी से ऐसे रिश्तों को दूर कर दिया, जिन्हें मैं अपना समझ के सालों से दिल से चिपकाए हुए थी।


    अन्य साहित्यकारों ने अपने बारे में क्या बतलाया या जीवन व साहित्य से जुड़े क्या विचार व्यक्त किया यह जानने के लिए आपको गुजरना होगा इस पुस्तक के पन्नों से। कुल मिलाकर यह पुस्तक पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी है। .


    समीक्षित पुस्तक : 'भेद खोलेगी बात ही ' (संपादक : शशिभूषण बडोनी), पेपर बैक संस्करण, मूल्य : ३०० रुपए, प्रकाशक : समय साक्ष्य, १५, फालतू लाइन, देहारादून-२४८००१


                                                  सम्पर्क : असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बागेश्वर-263642, उत्तराखंड