कविता - समुद्री लहरों का गर्जन  - प्रबोध नारायण सिन्हा,

कविता - समुद्री लहरों का गर्जन  - प्रबोध नारायण सिन्हा,


 


समुद्री लहरों का गर्जन


 


 


 जब जम होते हैं


समुंद्र के पास


तो अपने गर्जना का


अहसास करा जाती है


ये समुंद्री लहरें।


कभी घनघोर उमड़ पड़ती है


ये समुंद्री लहरें।


किनारे पर आती हुई


पत्थरों से टकराती हुई


ये निरन्तर आगे बढ़ती हैं


सैलाब के द्वारा


कीचड़ लो भी बहा ले जाती हैं


ये समुद्री लहरें


और कभी धीरे से


दूर बैठे मानव को


अपनी हल्की बूंदों से


एक अजीब सिहरन करा जाती है


ये समुंद्री लहरें


जब हो स्थिर


तो गभीर आशंकाओं


को दर्शा जाती


ये समुंद्री लहरें


निर्जीव होते हुए ही


सजीवता का बोध करा जातीं


ये समुंद्री लहरें।


अपने गर्जना से


सबको हिलोर देती


ये समुंद्री लहरें


गर्जना तथा सैलाब


जारी रखती


तबतक


जबतक


कीचड़ को समाहित


न कर लें


ये समुद्री लहरें।


अपनी घनघोर गर्जन से


हमारे अंदर


जीवन भरती हैं


ये समुंद्री लहरें।


गर्जन जारी ही


रखती है


ताकि


हम भी


गरज उठे


ये गर्जना


हमारे दिल और


दिमाग को हिलोरें


तो इन गर्जनों


का उद्देश्य भी


सफल हो जावें।


निशिचित रूप से


ये तूफां आना ही चाहिए


इन समुद्रो को घुमड़ना ही


चाहिए


इन समुद्रो को घुमड़ना ही


चाहिए।


                                                  सम्पर्क : ७८ जाफरा बाजार, (लालाटोली), गोरखपुर, उत्तर __ प्रदेश मो.नं. : ९७९२००६३६९