कविता - किला - प्रबोध नारायण सिन्हा
किला
हल्के हवा का
झोंका था
कि
बालू का किला
ढह गया
और
थे
जो
मजबूत
और
मजदूरों
द्वारा बनाए गए थे
अपने पसीने से
नहला किए गए थे
वह
वहीं खड़े रहे
मजबूत किले की तरह
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