कविता  -  पत्थर    - विशाल किशनराव अंधारे 

 


कविता  -  पत्थर    - विशाल किशनराव अंधारे 


 


 


पत्थर


 


मेरी कब्र का पत्थर


मेरे पेट पर रख देना


तब भरा दिखेगा पेट मेरा


और कोई हसकर नहीं


कह पायेगा की


'लाश का पेट खाली है'


 


लोग बहुत गौर से


देखते है लाशों को


जिन्दों को भी देखते तो??


तब उनमें से कोई देखे


मेरी खपरेल आंखें


जिसमें फसी पढ़ी है भूख


दो वक्त की रोटी के लिए


 


मेरे हाथों में फंसी


रेखाएं भी देखना


और उनपर डाल देना


कोई ऐसा जल


की मरने बाद तो पता चले


क्या थी मेरी नसीबी रेखा


जिसने शायद


मेरी मजदूरी दिनों में


कर लियी थी आत्महत्या


कोई


जोर से फोड़ देना मेरी आँखें


जिसके ख्वाब छोटे


होकर भी पूरे न हुए


मेरी टांगों को


गर्म पानी से नहलाना


बिना थके जो जीवन से मुटुं


तक अविरत चलती रही


मेरी चीखो को नहीं मिली कभी


प्रतिसाद की साद


जब गिरीबी कि मिट्टी से


ढक देगें मेरी लाश


 


तब एक पेड़ लगा देना


मेरी उस कब्र पर


छावं का नशीब तो हो


उस लाश के भविष्य में


 


तब एक बढ़ा सा पत्थर लेना


जो हो इतना बढ़ा की


तानाशाही राजा के


हवेली पर गिर जाए


उसकी छावं


 


और सुबह सुबह


जब वो जागे राजा


तो


उस छाव के अंधेरे में


दिखे उसे वही अंधकार


जो उसकी व्यवस्था से


झेल रही है उसकी आवाम


                                                      सम्पर्क : विशाल किशनराव अंधारे पोस्ट-मुरुड, जिल्हा- लातुर, महाराष्ट्र, पिन-४१३५१०


                                                                                                                      मो.नं. : ९८६०८२४८६८, ८९९९१५२३२२