कविताएं - शिकायतें - बसंत त्रिपाठी

बसंत त्रिपाठी - सुपरिचित कवि व कहानीकार सम्प्रति : एसोशिएट प्रोफेसर, हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, इलाहाबाद केंद्रीय विश्विद्यालय, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश 


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शिकायतें


 


तुम्हें यदि किसी से शिकायत नहीं


तो तुम


किसी से प्रेम भी नहीं कर सकते


 


तुम्हें यदि किसी से शिकायत नहीं


तो मुर्दे भी हो सकते हो


धार्मिक गुटके बाँच-बाँचकर


अपनी कथित आत्मा का


बेआवाज़ राग सुनते हुए


गुजार सकते हो अपना तथाकथित जीवन


 


यह शिकायत ही है


जो सक्रिय बनाती है


और कई बार आक्रामक भी


हत्या, तख्तापलट से लेकर


गिरि-शिखरों के मर्दन का


उन्मुक्त आवेग रचती हैं शिकायतें ही


शिकायतों की दिशा बदलकर ही तानाशाह


हमारे खून में अपने सपने घोलता है


और हमारी नींद में अपनी उँगलियाँ चटकाता है


बंजर शिकायतों पर ही खड़ी होती है


उन्माद की इमारत


झूठ के तर्कजाल की मेहराबें


विवेक की सतह फोड़कर


बहुत नीचे तक चली जाती है


 


शिकायतों के कुचक्र से झनझनाता यह जीवन लेकिन


शिकायतों के पुल पर से ही


पा सकता है अपना रास्ता


इसलिए शिकायत का शोर कभी सुनो


तो तस्दीक कर लो


कि वह तुम्हारी ही है


 


कि कहीं तुम


किसी और के माईक सिस्टम का


घनघनाता ध्वनि-डिब्बा तो नहीं हो !