मैं रहूंगा तो दुनिया रहेगी
संसार मरे तो मर जाए
मैं रहूंगा, मरूंगा नहीं
एक नया संसार रचूंगा
जिन पेड़ों की छाया में
एक पल भी विश्राम किया है कभी
जिन्हें खेल-खेल में भी छुआ है
जिन्हें नाम लेकर पुकारा है
जिनके कोतड़ों में चिड़ियों को
अंडे देते, उन्हें सेते देखा है
जिनके साथ जलते देखा है
माता-पिता के शरीर को
उनके बीजों में रहूंगा
आग में आग की तरह
जिन नदियों में उतरा हूँ कभी
पानी के फूलों की तलाश में
जिनके किनारों ने रास्ते बताए हैं
अंधेरे जंगल में भटक जाने पर
जिनको पीया है जमीन खोदकर
जब भी रेगिस्तान में छूटा हूँ अकेले
उनकी धार में रहूंगा
जल में जल की तरह
जो मिट्टी मेरे घाव भरती रही
जिसमें उगता रहा हरा होकर
जिसे खाया बार-बार
बड़ों की मनाही के बावजूद
उसमें मिलकर रहूंगा
पृथ्वी में पृथ्वी की तरह
जिस आकाश में तारे देखे हैं
झिलमिलाते हुए, टूटते हुए
चांद को बादलों से खेलते हुए
जो उल्टे गहरे समुद्र की तरह
तना हुआ है दुनिया के सिर पर
रहूंगा उस नीलेपन में
आकाश में आकाश की तरह
८/४/२०१९
जिस हवा के बिना भीतर
न आंधी रहती है, न तूफान
जिसके बिना न शहनाई
बज सकती है, न बांसुरी
रहूंगा प्राण की उसी सत्ता में
हवा में हवा की तरह
जब तक ताप रहेगा
जल, थल, नभ के किसी कोने में
जब तक जलने की संभावना
बची रहेगी कहीं, किसी भी रूप में
मैं मरूंगा नहीं, मैं रहूंगा
और मैं रहूंगा तो दुनिया भी रहेगी
१०/११/२०१८