लौटने के बारे में
जो चला गया
हो सकता है
कभी लौट भी आए
लेकिन वह कभी नहीं होगा पहले जैसा
कुछ भी पहले जैसा नहीं लौटता
नींद में दुःस्वप्न
हर बार नए चेहरों के साथ लौटते हैं
उदास रातों में लिखी चिट्ठियाँ अगर पते तक न पहुँचे
कहाँ लौट पाती है पहले-सी
कई शहरों के धक्के खाकर
वे बदल चुकी होती हैं
लौटना
स्मृतियों की पीठ पर सवार
सर्वथा नवीन क्रिया है
जैसे होंठ वही
लेकिन चुंबन हर बार नया
पहले से अधिक तप्त
या शायद
पहले से अधिक खिन्न
पहले मुझे लगता था
कि एक दिन
मैं भी लौट जाऊँगा अपने बचपन के शहर में
पहले जैसा ही मासूम और निरापद
लेकिन वह मेरा भ्रम था
दौड़ती हुई दुनिया में
सिर्फ एक दिलासा भरी थपथपाहट!
अब तो यकीन हो गया है
कि टाइम मशीन
मनुष्य की सबसे खूबसूरत और मुग्धकारी कल्पना है
ईश्वर से भी महान कल्पना!