अपनी बात - प्रतिरोध के एक स्वर का खामोश होना - गोपाल रंजन

गोपाल रंजन - प्रधान संपादक


गिरीश कनार्ड समाज की वैचारिकता के प्रमुख स्वर थे। उन्होंने अपनी कृतियों के सहारे उसके अंतर्विरोधों और द्वन्द्वों को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है। उनकी अभिव्यक्ति हमेशा प्रतिष्ठानों से टकराती रही हैं। वह सत्ता प्रतिष्ठान हो या धर्म प्रतिष्ठान। कोई भी व्यक्ति जो गहराई से आम आदमी से जुड़ा हुआ हो उसका स्वर प्रतिरोध का ही स्वर रह जाता है क्योंकि सच्चाई को उकेरने पर इन प्रतिष्ठानों को खतरा महसूस होता है और ऐसे लोगों के खिलाफ हमेशा उनका हमला होता है। गिरीश कनार्ड अब हमारे बीच नहीं हैं परन्तु उन्होंने जिन्दगी को जिस अर्थवान तरीके से जीया वह हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत है। इस अंक में गिरीश कनार्ड पर विस्तार से न सही लेकिन कम आलेखों के माध्यम से ही उनको समझने की पूरी कोशिश की गई है।


    इस अंक में प्रो. कृष्ण चन्द्र लाल ने जगदीश नारायण श्रीवास्तव पर एक महत्वपूर्ण आलोचनात्मक आलेख लिखा है। जगदीश नारायण श्रीवास्तव एक ऐसे आलोचक थे जिन्होंने खामोश रह कर ही बहुत सारे महत्वपूर्ण सृजन किए। गोरखपुर में रहते हुए भी उन्होंने हिन्दी साहित्य में विशिष्ट योगदान किया। डॉ. कुमार वीरेन्द्र ने डॉ. नामवर सिंह और इलाहाबाद के संबंधों पर विस्तृत शोधात्मक आलेख लिखा है। इस आलेख में उन्होंने गहराई से नामवर और इलाहाबाद के संबंधों का विश्लेषण किया है। प्रो. मुश्ताक अली ने अपने आलेख में प्रेमचन्द के उस पक्ष को उद्घाटित करने का प्रयास किया है जिसकी ओर सामान्यतया किसी की नजर नहीं गई है। उन्होंने विधवा विवाह पर प्रेमचन्द के द्वन्द्व पर प्रकाश डाला है। इसके साथ ही इस अंक में स्तरीय कहानियां, कविताएं और समिक्षाएं भी शामिल हैं।


    सृजन सरोकार ने हमेशा जनपक्षधरता के प्रति प्रतिबद्धता के साथ ऐसी सामग्री प्रस्तुत की है जिससे साहित्य को बेहतर ढंग से समझने की कोशिश हो सके। हमे विश्वास है कि यह अंक भी पाठकों को निराश नहीं करेगा।


    पिछले दिनों कई साहित्यकारों ने हमसे विदा ले ली। प्रो. लक्ष्मीधर मालवीय का निधन ओसाका में हो गया। वे महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के पौत्र थे और जापान के ओसाका विश्वविद्यालय में अध्यापन के बाद अवकाश ग्रहण किया था। इस बीच वरिष्ठ मित्र कवि नंदल हितैषी का भी इलाहाबाद में निधन हो गयावे साहित्य में अंतिम समय तक सक्रिय रहे और रंगकर्म तथा आंदोलनों से भी गहराई से जुड़े थे। सृजन सरोकार इन सभी दिवंगत रचनाकारों के प्रति अपनी शोक संवेदना प्रकट करता है।