सत्या शर्मा कीर्ति' ' - विद्या : लघु कथा, कविता, लेख आदि सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन
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ओ माँ तुम मत जाओ ना
नहीं जानता जन्म क्या है?
नहीं जानता मृत्यु क्या है?
वेदों के सूक्तों में क्या है?
ग्रन्थों के अथों में क्या है?
पर! जानता हूँ इतना की
माँ, मेरी तुम मत जाओ ना
नहीं चल रही सांस तेरी
क्यों निस्तेज बदन ये तेरा
क्यों मूंदी हैं ये पलकें तेरी?
होठ बन्द क्यों हुआ है तेरा?
हाँ! कुछ न कहना,चुप ही
रहना
पर ! माँ मेरी मत जाओ ना।
मेरी पीड़ा न कोई देख सकेगा
मन की व्यथा न समझ सकेगा
तुम जननी मैं पुत्र तुम्हारा
कौन मुझे अब दुलार करेगा?
हाँ! दुलार भले अब ना करना
पर ! माँ, मेरी मत जाओ ना।
पल - पल दिन गुजर रहा है
शाम है ढल कर आने वाली
क्यों नहीं उठती तुम आज तो
मेरी भी आँखें है झलकने बाली
नहीं पसन्द मेरा रोना तुझको
मैं अपने आँसू नहीं बहाऊंगा
हृदय पीड़ा से फट रहा है
फिर भी नहीं दिखाऊंगा
हाँ! मत पोछना आँसू मेरे
पर ! माँ मेरी मत जाओ ना।
तेरी ममता की लहरें संग ही
मेरी जीवन नैया बहती जाती
तेरे गोद के झूले में ही तो
मेरी किस्मत है हिलोरें लेती
स्वर्ग - नरक का ज्ञान न मुझको
सुख - दुख का न हाल मैं जानू बस तेरे आँचल के
बस तेरे आँचल के ही अंदर ही
सारी दुनिया की खुशियां पालू
हाँ! मत देना आँचल की छांव मुझे
पर! माँ मेरी मत जाओ ना ..
हाँ! प्यार भले न अब करना
पर ! माँ मेरी मत जाओ ना।
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