लघु कथा -अस्वीकृत मृत्यु -डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी '

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी-सहायक आचार्य (कंप्यूटर विज्ञान) जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर (राजस्थान) लेखन - लघुकथा, पद्य, कविता, गज़ल, गीत, कहानियाँ, लेख


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अस्वीकृत मृत्यु


अंतिम दर्शन के लिए उसके चेहरे पर रखा कपड़ा हटाते ही वहाँ खड़े लोग चौंक उठे। शव को पसीना आ रहा था और होंठ बुदबुदा रहे थे। यह देखकर अधिकतर लोग भयभीत हो भाग निकले, लेकिन परिवारजनों के साथ कुछ बहादुर लोग वहाँ रुके रहे। हालाँकि उनमें से भी किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि शव के पास जा सके। वहाँ दो वर्दीधारी पुलिस वाले भी खड़े थे, उनमें से एक बोला, “डॉक्टर ने चेक तो ठीक किया था? फांसी के इतने वक्त के बाद भी जिन्दा हैक्या?''


    दुसरा धीमे कदमों से शव के पास गया, उसकी नाक पर अंगुली रखी और हैरत भरे स्वर में बोला, “इसकी साँसे चल रही हैं!'' यह सुनते ही परिजनों की छलकती आँखें खुशी से चमक उठीं।


    अब शव के पूरे शरीर में सुगबुगाहट होने लगी और वह उठ कर बैठ गयापरिजनों में से एक पुलिस वालों से बोला, ''इन्हें आप लोग नहीं ले जाएंगे। यह तो नया जन्म हुआ है।''


    और वह स्थिर आँखों से देखते हुए अपनी पूरी शक्ति लगाकर खड़ा हुआ, अपने ऊपर रखी चादर को ओढा और घर के अंदर चला गयापरिजन भी उसके पीछे-पीछे चल पड़े।


    अंदर जाकर वह एक कुर्सी पर बैठ गया और अपने परिजनों को देख कर मुस्कुराने का असफल प्रयास करते हुए बहुत धीमे स्वर में बोला, “ईश्वर ने... फिर भेज दिया... तुम सबके पास..''। परिजन उसकी बात सुन नहीं पाए पर समझकर नतमस्तक हो ईश्वर का शुक्र मनाया।


    लेकिन उसी वक्त उसके मस्तिष्क में वे शब्द गुंजने लगे, जब उसे नर्क ले जाया गया था और वहाँ दरवाजे से ही धकेल कर फेंक दिया गया, इस चिंघाड़ के साथ कि, “पापी! तूने एक मासूम के साथ बलात्कार किया है... तेरे लिए तो नर्क में भी जगह नहीं है... फैक दो इस गंदगी को....''


    और उसने देखा कि जमीन पर छोटे-छोटे कीड़े उससे दूर भाग रहे हैं।


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