कविताएं - १५ अगस्त -देवेन्द्र आर्य

देवेन्द्र आर्य-जन्म : 1957, गोरखपुर। रेल सेवानिवृत्त गीतों के चार और गज़लों के पांच और नई कविता के दो संग्रह प्रकाशित कवि देवेन्द्र कुमार बंगाली पर दो और आलोचक डा. परमानन्द पर पुस्तक का सम्पादन आलोचना पुस्तक 'शब्द असीमित


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१५ अगस्त


न उनको इनसे करनी थीं


न इनको उनसे करनी थीं


उन्होंने इनकी बातें कीं


इन्होंने उनकी बातें कीं


न तुम बरसो न मैं बरसू


न तुम तरसो न मैं तरसू


यही दोनों ने तय पाया


हम हम होंगे हरएक सू


कुछ एक पत्थर उछल जाएं


कुछ एक जानें चली जाएं


कुछ एक आंसू निकल आएं


कुछ एक बचपन उजड़ जाएं


चिरागों तुमको जलना है


हवाओं से मचलना है


ये उजली काली पोशाके


अंधेरों से बहलना है।


इधर छूरी उधर गाएं


चलो दोनों को समझाएं


कलपती हैं कलपने दो


सियासत की हैं विधवाएं


हमारी दाल गल जाए


तेरा हाथी निकल जाए


करे यारी जो घोड़ा घास से


तो बोलो क्या खाए ?


मुबारक हो! मुबारक हो!


मुझे तुम और तुमको मैं


इन्होंने पूर्णमासी की


उन्होंने चांद रातें कीं


उन्होंने इनकी बातें कीं


इन्होंने उनकी बातें कीं


न इनको उनसे करनी थीं


न उनको इनसे करनी थीं।


                                                         सम्पर्कः 127, आवास विकास कालोनी शाहपुर, गोरखपुर-273006, उत्तर प्रदेश