कविता - यादों को बाँधा जा सकता है गिटार के तार से - रोहित ठाकुर

रोहित ठाकुर-जन्म : 6 दिसम्बर 1978 शैक्षणिक योग्यता : परा-स्नातक राजनीति विज्ञान विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित, विभिन्न कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ वृत्ति : सिविल सेवा परीक्षा हेतु शिक्षण रूचि : हिन्दी-अंग्रेजी साहित्य अध्ययन


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यादों को बाँधा जा सकता है गिटार के तार से


 


प्रेम को बाँधा जा सकता है


गिटार के तार से


यह प्रश्न उस दिन हवा में राँगा रहा


मैंने कहा -


प्रेम को नहीं


यादों को बाँधा जा सकता है


गिटार के तार से


यादें तो बँधी ही रहती है -


स्थान, लोग और मौसम से


काम से घर लौटते हुए


शहर खूबसूरत दिखने लगता था


स्कूल के शिक्षक देश का नक्शा दिखाने के बाद कहते थे


यह देश तुम्हारा है


कभी संसद से यह आवाज नहीं आई


कि यह रोटी तुम्हारी है


याद है कुछ लोग हाथों में जूते लेकर चलते थे


सफर में कुछ लोग जूतों को सर के नीचे रख कर सोते थे


उन लोगों ने कभी क्रांति नहीं की


पड़ोस के बच्चों ने एक खेल ईजाद किया था


दरभंगा में


एक बच्चा मुँह पर हथेली रख कर आवाज निकालता था -


आ वा आ वा वा


फिर कोई दूसरा बच्चा दोहराता था


एक बार नहीं दो बार -


आ वा आ वा वा


रात की नीरवता टूटती थी


याद है पिता कहते थे -


दिन की उदासी का फैलाव ही रात।


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