कविता - विस्थापन-१ - नीरज नीर

नीरज नीर-जन्म तिथि : 14 फरवरी 1973 राँची विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक अनेक राष्ट्रीय पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकशित कई भाषाओं में कविताओं का अनुवाद काव्यसंग्रह ''जंगल में पागल हाथी और ढोल'' प्रकाशित, जिसके लिए प्रथम महेंद्र स्वर्ण साहित्य सम्मान प्राप्त।


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विस्थापन-१


 


मछलियाँ बेचैन हैं।


जीवित रहने के लिए


मछलियों को सीखना होगा उड़ना।


उड़ना ऊँचा, उड़कर बैठना


वृक्ष की सबसे ऊँची फुनगियों पर।


करना तैयारी


देशांतर गमन की।


पोखरा, अहरा, तालाब


नदी, नालों के किनारों से दूर


पानी से बाहर निकलकर


पंख फड़फड़ाना


जीना नए परिवेश में


अपने रूप, रंग और गंध से हीन।


अपनी आत्मा को पानी के भीतर मिट्टी में


गहरे दफन करके निकलना बाहर


और संवेदना से शून्य


आकाश में विचरना


गरम हवा में साँसे लेते हुए


संघर्ष करना


जीवन के लिए आमरण।


मछलियों को बगुलों से शिकायत नहीं है।


वे सीख गई हैं सहजीविता


उनके साथ


मछलियों को खतरा है


विशाल हाथियों से


जो उतर आए हैं पानी में


विकास और प्रगति के बड़े बड़े बैनर लिए


मछलियाँ बेचैन है।


उन्हें विकास में दिख रहा है


विनाश।


                                                     सम्पर्क: ''आशीर्वाद', बुद्ध विहार, पोस्ट-अशोक नगर, राँची-834002, झारखण्ड मो.नं.: 8797777598