कविता - राजा - नीरज नीर

नीरज नीर - जन्म तिथि : 14 फरवरी 1973 राँची विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक अनेक राष्ट्रीय पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकशित कई भाषाओं में कविताओं का अनुवाद काव्यसंग्रह ''जंगल में पागल हाथी और ढोल'' प्रकाशित, जिसके लिए प्रथम महेंद्र स्वर्ण साहित्य सम्मान प्राप्त।


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राजा


 


देश की छाती पर


कील की तरह गड़ा है


चापलूसों के मध्य


वह अकेला खड़ा है


राजा का कान


उसकी दृष्टि से बड़ा है


उसे अपने आगे


कुछ दिखाई नहीं देता


वह उनको भी नहीं जानता


जिनकी पीठ पर वो अड़ा है


राजा के सामने


सब गौण हैं


फिर भी न जाने क्यों


साधे सब मौन हैं


कल रात राजा ने


सपने में देखा


भूख के मारे


उसके सामने


कोई चीखा


आज उसने मंत्री से पूछा


बताओं तो ये कौन है


मंत्री ने बताया


ऐसा आदमी


नहीं पाया जाता है


इस देश में ..


मालूम पड़ता है


पड़ोसी मुल्क का जासूस है


जो आ गया है


इस भेष में .....


ऐसे आदमी को शीघ्र


फाँसी पर लटकाया जाए


और हम हैं कितने ताकतवर


पड़ोसी मुल्क को बतलाया जाए।


                                               सम्पर्क: ''आशीर्वाद', बुद्ध विहार, पोस्ट-अशोक नगर, राँची-834002, झारखण्ड मो.नं.: 8797777598