आरती तिवारी
प्रेम में लौटना
उसने तुमसे मांगा था
आंच भर कोयला
देह की फुरफुरी मिटाने को
तितली भर रंग
इंद्रधनुष उकेरने को
मुट्ठी भर दाने
आषाढ़ की पहली बौछार का एक अवघ्राण
उसकी ओक भर प्यास ने
तुमसे नदी कब मांगी थी
चाँद का तकिया,तारों का दुशाला
उसका अभीष्ट नहीं था
जाड़ों की गुनगुनी धूप की एक झप्पी
वैशाख की एक सुरमई रात
माँगा जब भी तुमसे
तुम्हारी हैसियत भर ही माँगा।
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