प्रणय कुमार सिंह - जन्म: 23 अगस्त 1960 प्रकाशित कृतियां: तालाब के पानी में लड़की (कविता संग्रह), जिधर खुला व्योम होता है(कविता संग्रह), दर्द के खेत में (गज़ल संग्रह), कड़ी धूप में (हाइकु संग्रह), एक उत्तर-आधुनिक ऋचा (कवितासंग्रह), दूरी मिट गई (कविता संग्रह) सम्प्रतिः एक महाविद्यालय में अध्यापन
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दुखता रहता है यह जीवन
अगर मुझे देखोगे
शायद ही अनुमान कर सको
कितना कितना प्यार भरा है।
तुम्हारे लिए मेरे भीतर
यह कितना दुखता है
जब हम होते हैं दूर कहीं बिछुड़े
तुम्हें क्या कभी नहीं लगा
दुखता रहता है यह जीवन
बताओ न मुझे
मेरे भीतर का अदम्य भाव
क्या तुम्हें नहीं दिखा
यह अदम्य भाव मेरी आँखों में
क्या इन आँखों ने दे दिया धोखा
या तुम्हें कोई कीमत ही नहीं
तुम्हारे लिए इस सबका
कितना कितना रूलाती है
तुम्हारी निर्ममता
मेरी धड़कनों, साँसों-उच्छवासों
से अनजान नादान तुम
भरोसा न हो तो पूछ लो
फूल-पत्तियों, वनपाखियों
या खुले आकाश में छितराए
चाँद और सितारों से
कितनी इच्छाओं ने सँवारा है मुझे
कितनी हवा, कितना पानी
कितने खून, कितने पसीने
कितनी इच्छाओं, कितने सपनों ने
कितने हाथ और स्नेहिल उंगलियों ने
छुआ है, सँवारा है मुझे ओ पितर !
चूँधियाई चकाचौध रोशनी में दिग्भ्रमित
या गहन अंधेरे में लड़खड़ाए हैं मेरे कदम
थाम लिया है मुझे मुक्तिबोध ने
मगर पूछा है हमेशा एक कठिन सवाल
पार्टनर तुम्हारी पालिटिक्स क्या है
पहले यह तो बताओ तुम हो किधर ?
गहरी निराशा के क्षण, जब जब हारा है मन
टूटा है मन, काँपा है विश्वास, लड़खड़ाए हैं कदम
कंथे पर हाथ धर कानों में फुसफुसाएं हैं महाप्राण
होगी जय, होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन !
खेत खलिहानों में
लहलहाती फसलों के बीच
या बिवाई फटे उदास
चिर पिपासित खेतों की मेड पर
मिल ही गए हैं बाबा नागार्जुन और त्रिलोचन
बोलते-बतियाते,पटाते सूखे खेतों में पानी
कठिन क्षणों में थामे
हमेशा साथ खड़े मिले हैं पाश
अपने सपनों को बचाने की नसीहत देते
अपने शहर की भूलभुलैया गलियों की मोड़ पर
हाँफते कृथते इतिहास के हाशिए पर
हमेशा खड़े मिले है धूमिल आश्वस्ति बन
साइकिल थामे हुँकारते गरियाते
कब खाली रहा हूँ मैं
किस कमजोर क्षण तुम नहीं रहे
हमारे साथ ओ पितर
मुझे संभाला है हर लड़खड़ाते मोड़ पर
तुम्हीं, तुम्हीं ने सँवारा है मुझे
अपने हजार हजार हाथों और स्नेहिल उंगलियों से
ओ पितर ।।
सम्पर्क : बलवा कुंआरी, हाजीपुर, बिहार