एक शायर की कथा
वह एक मुकम्मल शायर था
वह दुनियादार नहीं था
वह पहचानता था लोगों को
वह पक रहे खाना
में चूल्हे की लकड़ी होना जानता था
उसकी दुनिया किताबों से भरी थी
वह नंगी आँखों से भाषा की रूह पहचान लेता
दीपक की बाती वह बढ़ा देता
उसका कमरा रौशन हो जाता
उसे कोई किताब तुरंत चाहिए
उसे कलम, कागज, पैड तुरंत चाहिए।
वह डायनिंग टेबल से धूल झाड़ते हुए
धरती के बारे में सोचने लगता
धरती जो कभी भी शायर को जगह नहीं दे सकी
सूरज रोशनी, चाँद शीतलता नहीं दे सका
तारे उसकी जबान पर थे।
जो कभी-कभी घर के पर्दे पर
जुगनू की तरह झांकते
शायर देख-देख कर
चुप्पी की साधना में
चुप होता गया
एक चुप शायर की गूंज
बादल के टकराने से भी तेज होती हैं
चुप शायर शब्दों को बीनता है।
ये शब्द कभी कमीज
कभी स्वेटर, कभी पैण्ट
कभी-कभी रिक्शावाले की टीस
मजदूर की आवाज
नंग-धडंग बच्चे
फटे-हाल लोगों की लाज
किसी भूखे की रोटी
ये शब्द, हाँ! शायर के
यही शब्द हमें बड़ा करते हैं।
शायर! जो अपने समय से आगे चलता है।
हम उसकी उंगली पकड़ सीढ़ियाँ चढ़ते
कैलेण्डर बदल जाते हैं ।
बेर फूलने लगते हैं।
अशोक नई पत्तियों से भर जाता
गुलमोहर फूल से लद जाते।
शायर गौरा को देखता
उसके घोसले को देखता
बया को देख कर चहक उठता
एक ठण्डी हवा जो शायर को छूकर चली गई
शायर फटी बनियान और
लुंगी में एकटक चींटी को ताकता रहा
चीटियाँ जो एक चावल का दाना
ढकेल कर कहीं ले जा रही थीं
शायर टूटे चप्पल से
दुनिया नापना चाहता है।
वह बोलना चाहता है।
उसके हाथ हवा में लहरा रहे हैं।
लोग चुप हैं।
लोगों की चुप्पी कूटनीति से भरी
राजनीति का हिस्सा है।
शायर तो सबका है।
अभी लोगों ने
अपने घर से बाहर
झाँकना ही नहीं जाना
पीढ़ियाँ
बाबा बरामदे में
चिड़िया के लिए
पतुकी में पानी
जमीन पर दाना
दीवार में खौंता के लिए
कोना जरूर रखते
मैंने कई बार देखा
गौरैया का गिरा अण्डा
उसके घोंसले में
सावधानी से रखते हुए
बाबा घोड़ा से शुगर मिल जाते
मुन्नी बाबू एक दिन लगाम पकड़ लिए
चचा! यह रास्ता अब रास्ता नहीं
मेरा बरामदा है।
बहू आने वाली है।
इसमें रहेगी
चचा! रास्ता बदल लो
बाबा दूसरे रास्ते जाने लगे
दूसरे रास्ते में भीम बाबू का घूरा था
भीम बाबू घूरा चौड़ा करने लगे।
एक दिन बाबा गिर गए।
भीम बाबू ने कहा
बाबा देखकर चलो
बबा अंधे नहीं थे।
बाबा घोड़ा से चलना बंद कर दिए
बाबा रिटायर हो गए।
बाबा गीता पढने लगे
बाबा कुआँ खुदवाए।
मंदिर बनवाए।
तुलसी लगवाए
बाबा आम का बाग लगवाए
आम का एक पेड़ दान कर दिया
खेत से एक खेत दान कर दिया
बाबा प्यासे थे लोगों के
लोग बाबा के पास आते
बाबा जानते थे आदमी होना
आदमी के बीच
एक बार मास्टर साहब ने कहा
स्कूल की छत टूटी है।
बारिश में पढ़ाना संभव नहीं
बाबा घर पर स्कूल लगवा दिए
स्कूल की ईंटें धीरे-धीरे
गायब होने लगीं
अब वहाँ केवल खजूर के पेड़
और खाली मैदान है।
बरगद के नीचे जहाँ लड़के पहाड़ा
याद करते थे।
वहाँ गोंदा बिछा है।
मक्खियाँ भिन-भिना रही हैं।
लोग वहाँ गाय-भैंस अब चराने लगे हैं।
परघान ने एक दिन मास्टर साहब से कहा
युगल बाबू का घर ही
स्कूल बना दिया जाए।
मास्टर साहब सब जान कर भी चुप रहे
वे जानते थे।
विरोध का मतलब ट्रांसफर
मास्टर साहब युगल बाबू से बतिया सकते थे।
परधान से नहीं ।
बाबा के चश्मा का शीशा
अब मोटा हो गया था।
बाबा बिना बकुली के
चल नहीं पाते थे
बाबा के हुक्के का पानी
बहुत दिन से नहीं बदला था
बाबा के हुक्के के चिलम
फूट गया था।
बाबा चोकट से कहे।
नाथ से कहे, श्रीनिवास से कहे
लाना सब भूल जाते थे।
बाबा को खाँसी आ रही थी
माँ काढा तैयार कर रही थी
बाबा खाँसी से बचना चाहते थे
खाँसी उनके पीछे पड़ी थी।