कविता - सबके हैं अपने चश्मे - डॉ. प्रशान्त अग्निहोत्री

सबकी अपनी दुनिया है,


और रमे हुए हैं सब उसमें।


अलग नजरिया है सबका,


सबके हैं अपने चश्मे ।


कोई अहंकार में डूबा,


कोई उलझा रूप जाल में।


कोई कहे मौज से जी लो,


कोई पडे न इस बवाल में।


सबकी अपनी रीति नीति है,


सबकी हैं अपनी रस्में।


कोई माने खुदा है पैसा,


कोई माने हाथ का मैल।


कोई डूबा सत्ता मद में,


राजनीति को बना रखैल।


जिसको चाह अमरता की,


मन करता अपने वश में।


कोई करता धर्म का धंधा,


कोई पड़े न पुण्य पाप में।


कोई ढूंढे मौन में स्वर को,


कोई कोई साधे है अलाप में।


सत्य किसी का ईश्वर, कोई


खाता है झूठी कसमें ।।