देखते हो न शाम उदास-उदास
सुबह इससे जियादा थी बकवास
जिससे मिलिए वही कराता है
अपने होने का बार-बार एहसास
ऐ नदी तुझ तक आते-आते भी
मार देती है आदमी को प्यास
खेल है टूटना भरोसे का
रोज बनता-बिगड़ता है विश्वास
खूबसूरत वही है आफ़िस में
देख कर जिसको मुस्कुराए बॉस
फूल मत एक-दो किताबों पर
लोग पढ़के भी छीलते हैं घास
अश्क जी, अब पहुंच है हिकमत है
आजकल दिल कहां किसी के पास..