जो रस्ते में हैं धूल उड़ाते हुए,
वो आते हुए हैं कि जाते हुए ?
खुशी वो कि हम तो सिहर ही गए
बहुत डर लगा मुस्कुराते हुए
अजब आइना तेरी आंखों में है
गए वक्त लगते हैं आते हुए
पसीने से सूरज तू जितना उगा
नदी खुश है बादल बनाते हुए
कमाया हुआ सच भी जीते हैं हम
कहानी-कहानी छिपाते हुए
वो पागल नहीं थे जो अपना समय
जिए घर का घर-पन बचाते हुए
कहा उसने, कैसे हो तुम अश्क जी
सफलता का उत्सव मनाते हुए..