गजल - महेश अश्क

क्या समंदर से कुछ इशारे हैं


लोग क्यों इतने खारे-खारे हैं?


फोटो कॉपी-सी है नदी अपनी


वो बहुत खुश हैं जो किनारे हैं


कूच करने लगो तो कोई नहीं


और गिनती करो तो सारे हैं


राह तकते हैं साफ मौसम की


लोग डल-झील के शिकारे हैं


कुछ को जुगुनू तलक नसीब नहीं


कुछ की मुट्ठी में चांद-तारे हैं


लब प‘बात आए और कह न सके


पतले क्या इतने दिन हमारे हैं?


प्यास पर, किसके साथ समझौता


आप दरिया, न हम किनारे हैं.


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