क्या समंदर से कुछ इशारे हैं
लोग क्यों इतने खारे-खारे हैं?
फोटो कॉपी-सी है नदी अपनी
वो बहुत खुश हैं जो किनारे हैं
कूच करने लगो तो कोई नहीं
और गिनती करो तो सारे हैं
राह तकते हैं साफ मौसम की
लोग डल-झील के शिकारे हैं
कुछ को जुगुनू तलक नसीब नहीं
कुछ की मुट्ठी में चांद-तारे हैं
लब प‘बात आए और कह न सके
पतले क्या इतने दिन हमारे हैं?
प्यास पर, किसके साथ समझौता
आप दरिया, न हम किनारे हैं.