अनछुए विषयों पर लिखी कहानियां - गंभीर सिंह पालनी

‘धुआं-धुआं तथा अन्य कहानियां' कहानीकार गजेन्द्र रावत का दूसरा कहानी-संग्रह है। उनका पहला कहानीसंग्रह ‘बारिश, ठंड और वह भी हिन्दी-जगत में पर्याप्त चर्चित रहा है।


     ‘धुआं-धुआं तथा अन्य कहानियां' नामक संग्रह में कुल ग्यारह कहानियां हैं। पहली कहानी ‘धुआं-धुआं' संग्रह की सबसे लंबी कहानी है। यह कहानी समाज के वंचित, तिरस्कृत व उपेक्षित तबके के लोगों की जिन्दगी की कहानी है। इस जिन्दगी की एक बानगी देखिए - ‘फुटपाथ तक फैला गौरी-शंकर मंदिर और दुकानों की पंक्ति के बीच सीमेंट का घड़ा जमीन के स्तर से ऊंचा उठा हुआ था। इस जगह को लम्बे अभ्यास ने भिखारियों और साधुओं की मुफ्त खाना बांटने की जगह में तब्दील कर दिया था। हर वक्त खाना बंटने की आस में कुछ लोग यहां मंडराते रहते।....वे मैले-कुचैले चिथड़ों में लिपटे, उनके चेहरे गंदगी-मैले के काले धब्बों से चीकट थे।... सिर के बाल मैल से लिबड़े गुच्छे-से बन गए। थे जो जुओं और खटमलों के स्थाई बसेरों में बदल चुके थे। ... वे बूढ़े, जवान तथा कम उम्र के भी थे।''


      ऊपर वर्णित भिखारी प्रतीक्षा करते रहते हैं कि कोई उन्हें भोजन वितरित करने आए। आपस में होने वाली उनकी बातों की बानगी देखिए- “अभी तक कोई नहीं आया?'', “आज किसी के यहां कोई मरा नहीं क्या?'', “अबे भीख से कब तक जुड़ेंगे, ऐसा कर झपटमारी शुरू कर दे...। पर रहने दे तेरे से भागा भी तो नहीं जाएगा।''


     इसी तरह का जीवन-यापन करते हुए उनमें से एक भिखारी ‘मामा' की लाश एक दिन एक गूदड़ में लिपटी मिलती है जो कि सड़ चुकी है। लावारिस लाशों को ले जाने वाली गाड़ी इस लाश को ले जाती है। उसके भांजे रघु को, जो कि स्वयं एक भिखारी है, जब इस बात का पता चलता है तो फफक-फफक कर रोने लगता है। सड़क और फुटपाथ की गतिविधियां पहले-सी बेरोकटोक जारी रहती है। रघु अकेला, तन्हा चारों ओर मशीनों से चलते लोगों को देखता रहता है।


     कहानीकार ने समाज के उपेक्षित तबके के जीवन का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है।


     ‘जिद्दी' भी समाज के अति निम्न वर्ग से उठाए गए पात्र तारा की कहानी है जो ऐसे इलाके में रहता है जहां, यहां-वहां का कूड़ा-करकट और गंदे पानी के भीतर से निकाली गई गाद सूख जाने की वजह से कचरे के अनगिनत ढेर नाले के किनारे-किनारे उठ खड़े हुए थे जो दूर से छोटेछोटे टीलों से जान पड़ते थे।... इन्हीं टीलों के दूसरी तरफ आपस में सटी छोटी-छोटी झुग्गियों की टेढ़ी-तिरछी पंक्ति पूरे क्षितिज तक फैली हुई थी। यहां चौबीसों घण्टे गंदे नाले से उठते भयंकर दुर्गध के भभके हवा में फैले रहते।''


     ऐसी परिसिीतियों में रह रहा तारा भी कहानी के अंत में ठेकेदार के किसी प्रलोभन में नहीं आता और अपनी जिद पर कायम रहता है।


    ‘बेजुबान' शीर्षक कहानी का नायक विष्णु अपनी बैलगाड़ी से लोहा ढोने का काम करता है। वह अपने बैल के प्रति स्नेह रखता है। उसके मनोभाव देखिए- “तेरा बड़ा सहारा है... अगर तू न होता तो मैं भी ऐसे ही सरिये ढो रहा होता.... और ढोये भी हैं मैंने सालों-साल.... चल भई राजा। चल राजा आधा पुल तो लगभग पार हो ही गया है आगे तो उतराई ही रह जाएगी .... बस थोड़ा और!.... मुझे पता हे तू तीन रातों से सड़क पर ही है... एक हफ्ते और लगके कर ले ... फिर तुझे छुट्टी दूंगा, खूब आराम करना, डट के खाना- पीना ... अभी तो मजबूरी ठहरी।''


     कहानी के अन्त में आते-आते इस बैल की धड़कने बन्द हो जाती है और विष्णु को भी लगता है कि मानों उसकी सांसे रूक गई। ‘ग्रैंड पार्टी' शीर्षक कहानी हैडक्लर्क से पदोन्नत होकर सचिवालय में ऑफिस-सुपरिन्टेडेन्ट बने मधुकर द्वारा कर्मचारी शैलेन्द्र को झांसे में लेकर उससे । दावतें लेकर शोषण करने की कहानी है। शैलेन्द्र परेशान है और विभागीय स्थानांतरण के लिए मधुकर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने को विवश है। ऐसी ही एक शाम को मधुकर अपने एक वरिष्ठ अफसर को दावत दिलवाकर शैलेन्द्र को उसका काम करने का झांसा देता है। कहानी बड़े शानदार अन्त के साथ खत्म होती है जब, “मधुकर तुम भी सही आदमी पकड़ते हो। वैसे मैं नहीं जानता किसी रस्तोगी को लेकिन तुमने उसे (शैलेन्द्र को) पूरा विश्वास में ले रखा है। ये हुनर कमाल का है तुम्हारा....'' कहने वाला बड़ा अफसर शैलेन्द्र के खिसक जाने पर दोनों हाथों से सिर पकड़ कर बैठ जाता है जब मधुकर सीढ़ियों पर हांफते हुए ऊपर आकर उसे बतलाता है कि शैलेन्द्र तो बिल चुकाये बिना भाग गया।


     ‘फंगस' कहानी रिटायर्ड कैबिनेट सेक्रेट्री मि, मिथिलेश । के बारे में नर्सी की धारणा है कि अस्पताल में भर्ती यह बुढ्ढा ठीक नहीं है। पहले तो


                                                                                                                                       


बेटी-बेटी करता है लेकिन फिर बहुत ऊट-पटांग बोलता है, बात-बात पर हाथ पकड़ लेता है। इसीलिए अब उसके वार्ड में एक सेक्यूरिटी गार्ड लगाया गया है। वह शैफाली द्वारा उसे लिफ्ट न दिए जाने से खार खाकर उसे सस्पैण्ड करवाने के लिए चाल चलता है पर उसकी यह चाल सेक्यूरिटी गार्ड की समझदारी के आगे धरी रह जाती है।


     'मोनोटोनी' कहानी में अस्पताल के लिए दिन-रात एक कर देने वाली नर्स साम्या द्वारा पिछले तीन साल से छुट्टियां न लेने के बावजूद किए जाने की दफ्तरी कार्यशैली की निर्ममता और अमानवीयता का चित्रण है।


      ‘सेल्सगर्ल' कहानी एक सेल्स गर्ल में मौजूद मूलभूत ईमानदारी के जाग उठने की कहानी है।


      'दुनिया' कहानी आज की दुनिया के एक नए ही रूप से हमारा साक्षात्कार कराती है। 'वो' कहानी एक ऐसे चरित्र की कहानी है जो किसी जरूरमन्द की मदद करने के लिए इन्टरव्य में ही नहीं जाता जबकि आवेदक भी कुल दो ही है।


      ‘अंधेरा' हमें एक मध्यवर्गीय परिवार में ले जाती है तो ‘मास्टरपीस' एक कलाकार से हमें मिलवती है जो रामलीला में कैसे भी एक रोल पा लेना चाहता है।


       कुल मिलाकर संग्रह की सभी कहानियाँ पठनीय है। आर हमें अपने अंत तक बांधे रखती है। गजेन्द्र रात की ये कहानियां पढ़कर हमें लगता है कि ये अनछुए विषयों पर लिखी कहानियां है। यही विषय समकालीन कहानीकारों की भीड़ उन्हें अलग पहचान देते हैं।


                                                                                                                    समीक्षित पुस्तक : ‘धुआं-धुआं तथा अन्य कहानियां',


                                                                                                                    लेखक : गजेन्द्र रावत, प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर,


                                                                                                                     मूल्य  :  १५०/-